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Bihar caste survey : कौन जात है भाई? बिहार जातिगत जनगणना से किसको फायदा किसको नुकसान?

Bihar caste survey

Bihar caste survey

Bihar caste survey : दोस्तों कल से जातिगत जनगणना ,ट्रेंडिंग में चल रहा है ,जी हाँ ,बिहार सरकार ने जातिगत गणना के आंकड़े जारी किए,,सोशल मीडिया पर ,ये आकडा खूब ट्रेंड कर रहा है ,ओर चुनाव तक तो एक ,ईसी मुद्दे पर बात होनी ही है ,और इसको ऐसे दिखाया जा रहा है ,जैसे पता ही नहीं किया कर दिया हो ,सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ये आकडे जारी ही नहीं होने थे ,फिर भी इसको बिना आदेश के जारी किया गया,,बिहार की जातिगत जनगणना के पीछे, हिन्दुओं को बाँटने की राजनीति चल रही है ,ये बात आपको आकडे देख कर समझ आ जाएगी

दोस्तों मोदी लहर में जातिवाद की हवा निकल जाती है, और 2014 व 2019 में देखा जा चुका है कि ,सभी जाति के लोगों ने जाति से ऊपर उठ कर, नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया। ,बिहार में भी ऐसा ही हुआ, तभी 2014 में आरजेडी -jdu और 2019 में आरजेडी की हवा निकल गई। ,ये पार्टियाँ इससे निपटने का कोई ,रास्ता खोज रही थीं और इन्होंने जाति आधारित जनगणना को ,हिन्दुओं को विभाजित करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।

राहुल गाँधी ने किया ट्वीट

दोस्तों ऐसा नहीं है कि ,मुस्लिमों में जातियाँ नहीं हैं, लेकिन मुस्लिम समाज में जाति को लेकर ,कभी उस तरह की लड़ाई नहीं देखी गई ,जो हिन्दुओं का इतिहास रहा है। इसीलिए, जातिगत जनगणना से, हिन्दुओं को ही बाँटने का खेल खेला गया है, मुस्लिमों की प्रमुख जातियों में शेख 3.82% अंसारी 3.54% सुरजापुरी 1.87% और दुनिया 1.43% हैं। लेकिन, इसकी कोई संभावना नहीं है कि ,मुस्लिम जाति के आधार पर बँटेंगे, खासकर बिहार में।

अब कोई इन नेताओ से पूछे ,राज्य में पिछले 33 वर्षों से इन्ही नेताओं का शासन है ,जो आज जातिगत जनगणना की बातें कर रहे हैं, फिर भी राज्य इतना पीछे कैसे रह गया? ,जातियाँ इतने पीछे क्यों रह गईं? पिछले 33 वर्षों के ‘सामाजिक न्याय’ का क्या असर हुआ? ,33 वर्ष एक लंबा समय होता है। ,अगर इसमें सब कुछ ठीक नहीं हुआ ,तो क्या गारंटी है कि इन सत्ताधारी दलों के ,नए पैंतरों से सब कुछ ठीक हो जाएगा? ,सत्ता तो साढ़े 3 दशक से इनके हाथ में है, अब तक इन्होंने जो किया ,क्या उसका कोई पाज़िटिव रिजल्ट है इनके पास ?

आप राहुल गाँधी का ये ट्वीट देखिए ,उन्होंने लिखा कि बिहार में ‘OBC + SC + ST’ की जनसंख्या 84% है। इससे सब कुछ साफ़ हो जाता है। उन्होंने इसका खास ख्याल रखा कि, हिन्दुओं की जनसंख्या न बताई जाए, न ही ये शब्द इस्तेमाल किया जाए। ,राहुल गाँधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक़’ को कॉन्ग्रेस का प्रण करार दिया। अब कई मुस्लिम ये पूछ रहे हैं कि ,आबादी में उनकी हिस्सेदारी 18% होने के बाद ,संसाधनों और पदों पर उनकी हिस्सेदारी की बात, कोई क्यों नहीं कर रहा?

जाति आधारित जनगणना के क्या हैं आँकड़े

दोस्तों आँकड़े जारी होने के बाद से ,बिहार की 2 प्रमुख सत्ताधारी दलों, राजद और जदयू के समर्थकों में, जश्न का माहौल है। ,ऐसा प्रदर्शित किया जा रहा है जैसे, राज्य सरकार ने किसी ,बहुत बड़ी जन-कल्याणकारी योजना को पूरा कर के दिखा दिया हो। बिहार सरकार ने जो आँकड़े जारी किए है,,उसके अनुसार राज्य में 36.01% जनसंख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है। ,वहीं 27.12% जनसंख्या पिछड़ा वर्ग की है। ,अनारक्षित या सामान्य वर्ग के लोगों की ,जनसंख्या 15.52% बताई गई है।

‘अत्यंत पिछड़ा वर्ग’ का मतलब बिहार में, 130 जातियों और उप-जातियों वाले ,EBC समुदाय से है, जो लंबे समय से नीतीश कुमार के एजेंडे में रहा है। ,उन्होंने गैर-यादव पिछड़ी जातियों की गोलबंदी तैयार करने के उद्देश्य से ,इसे अलग से वर्गीकृत किया था। ,इसमें यादव और कुर्मी जैसी OBC जातियाँ शामिल नहीं हैं। ,तो क्या अब EBC और OBC नामक, 2 गुट बन जाएँगे ,और गोलबंदी अलग-अलग होगी इनकी? इन सवालों का जवाब भविष्य देगा, लेकिन अब OBC में भी ज़्यादा प्रभाव वाली जातियों के खिलाफ ,अलग-अलग जातियों के संयुक्त मोर्चे बनने लगेंगे। ,पहले भी ऐसे प्रयोग हुए हैं, ये अब और तेज़ हो सकता है।

इस तरह बिहार में OBC और EBC को मिला दें ,तो ये 63% बैठता है। ,इस ‘Caste Census’ रिपोर्ट में ,कुल 203 जातियों का जिक्र किया गया है। इनमें से 196 जातियाँ ऐसी हैं, जिन्हें आरक्षण मिल रहा है। ,बिहार की नौकरियों में अब तक ,EBC को 18% SC को 16% BC को 12% और EWS को 10% आरक्षण मिलता रहा है। ,EWS छोड़ कर बाकी आरक्षित वर्ग में, महिलाओं को 3% आरक्षण है। वहीं 1% सीटें ST समाज के लिए आरक्षित होती हैं।,लगभग 31 मुस्लिम जातियाँ EBC में हैं। ,मुस्लिमों की कुल जनसंख्या का 10% EBC है। ,अब देखना ये होगा कि आरक्षण से लेकर ,आने वाली योजनाओं में इनको ,किस तरह से फायदा पहुँचाया जाता है।

सर्वे के मुताबिक, बिहार की कुल आबादी है 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार. इसमें बिहार के बाहर रहने वाले प्रवासी भी हैं. करीब 53 लाख 72 हजार. यानी बिहार की सीमा में रहने वाले लोगों की संख्या हुई, 12 करोड़ 53 लाख. कुल आबादी में पिछड़े वर्ग की संख्या है- 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार. यानी 27.12 प्रतिशत.- अत्यंत पिछड़े वर्ग की आबादी है- 4 करोड़ 70 लाख 80 हजार. यानी 36 प्रतिशत.- अनुसूचित जाति यानी दलित समुदाय की आबादी है- 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार. यानी 19.65 प्रतिशत.- अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी आबादी है- 21 लाख 99 हजार. यानी 1.68 फीसदी.- एक कैटगरी है अनारक्षितों की, जो तथाकथित अगड़ी जाति माने जाते हैं, उनकी आबादी है- 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार. यानी 15.52 फीसदी.,कुछ आँकड़े ऐसे भी हैं, ,जिन्हें गोपनीय बताते हुए, सरकार ने प्रकाशित करने से इनकार कर दिया है। ,बड़ी बात ये है कि ,सरकार ने पिछड़ों और अत्यंत पिछड़ों के अलावा, सवर्णों में भी मुस्लिमों के विभिन्न समूहों को रखा है।

एक पिछड़े और गरीब राज्य में जाति जनगणना प्राथमिकता

बिहार सरकार ने जो जाति आधारित जनगणना के आँकड़े सार्वजनिक किए हैं, उनके हिसाब से राज्य में हिन्दुओं की जनसंख्या जहाँ 81.99% है, वहीं मुस्लिम 17.70% हो चुके हैं। ,बाकी सभी मजहबों की जनसंख्या 0.1% प्रतिशत भी नहीं है। ,इन आँकड़ों के सामने आने से ,नीति निर्धारण में क्या मदद मिलेगी, योजनाओं की रूपरेखा किस तरह से बदल जाएगी ,और गरीबों का क्या फायदा होगा – इस संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है।

बिहार में जातियों की जनसंख्या में यादव 14.26% रविदास 5.2% कोइरी 4.2% ब्राह्मण 3.65% राजपूत 3.45% मुसहर 3.08% भूमिहार 2.86% कुर्मी 2.80% मल्लाह 2.60% बनिया 2.31% और कायस्थ 0.60% बताए गए हैं। संविधान निर्माताओं और देश की पहली कैबिनेट ने, जाति आधारित जनगणना न कराने का निर्णय लिया था, क्योंकि इससे समाज में विभाजन पैदा होगा। ,आज बात-बात में संविधान का रट्टा मारने वालों ने ही ,ये जनगणना कराई है।

आप आरजेडी का ये ट्वीट देखिए ,बिहार की सत्ताधारी पार्टी RJD ने भी, इस बात की पुष्टि की है कि, इस आँकड़े में सभी धर्मों के सामान्य, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग हैं। ,यानी, सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि ईसाइयों और बौद्धों को भी सामान्य, BC और EBC में एडजस्ट किया गया है। पार्टी ने बताया कि अति पिछड़ा वर्ग की आबादी में 10.60% मुस्लिम हैं। ,इन मजहबों को कैटेगरी असाइन करने का पैमाना क्या था, ये साफ़ नहीं किया जा रहा है।

लेकिन, इतना ज़रूर साफ़ हो गया है कि, इन आँकड़ों का इस्तेमाल आगे की राजनीति में ,भरपूर तरीके से किया जाना है। ,सबसे बड़ी बात कि एक पिछड़े राज्य में, सिर्फ जिद के लिए जाति आधारित जनगणना कराने के, लिए पूरी की पूरी सरकारी मशीनरी को काम पर लगा दिया गया। ,कई अधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी। इसके लिए 2.34 लाख जनगणना करने वाले कर्मचारियों ,और 40,726 पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई थी। ,इसके लिए कोई अलग से अस्थायी भर्तियाँ निकाली नहीं गई थीं

जातिगत जनगणना के सहारे सोशल मीडिया में ज़हर बोने की राजनीति

इसकी जिम्मेदारी उन teachers को दी गई थी, ,जिनका काम है बच्चों को पढ़ाना ,और देश-समाज के लिए एक बेहतर भविष्य तैयार करना। ,लेकिन, इन teachers को लोगों की जाति पूछने के लिए लगा दिया गया। जिला और अनुमंडल स्तर के अधिकारियों को जिम्मेदारियाँ दी गईं। इसके लिए 500 करोड़ रुपए से ज़्यादा, फूँक दिए गए। वो भी ऐसे राज्य में, जो GST कलेक्शन के मामले में ,निचले पायदान पर है। ,यही नहीं, बिहार एकमात्र ऐसा राज्य है ,जहाँ GST कलेक्शन ग्रोथ के मामले में नेगेटिव में है।

सितंबर 2023 के जीएसटी कलेक्शन के आँकड़ों के मुताबिक ,देश के 1.62 लाख करोड़ रुपए रहा। ,अधिकतर राज्यों में पिछले साल के मुकाबले, दो अंकों में उछाल प्रतिशत देखा गया, जबकि बिहार में ये -5% घट ही गया। ,ये बताता है कि ,राज्य विकास के मामले में पीछे छूट रहा है। ,इस पर काम करने की बजाए ,वहाँ की गठबंधन सरकार ने, जातिगत जनगणना को प्राथमिकता दी। ,जिस राज्य के नेता खुले रूप में नहीं चाहते हैं कि, विकास हों, उनमें विकास को लेकर कोई गंभीरता दिखती ही नहीं, अब उनकी प्राथमिकताएँ भी स्पष्ट नज़र आने लगी हैं।

भाजपा के लिए आईटी सेल-आईटी सेल, चिल्लाने वाले नेताओं को ,सोशल मीडिया पर उतर कर देखना चाहिए कि ,आखिर IT सेल होता क्या है। ,जैसे ही जाति आधारित जनगणना के आँकड़े, सार्वजनिक किए गए, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को, मसीहा बताने वाले ट्वीट्स की बौछार हो गई। यहाँ आइए हम कुछ ऐसे हैंडलों को देखते हैं ,जिन्होंने इसे ऐसे पेश किया ,जैसे बिहार में एक नई ‘सिलिकॉन वैली’ बन गई हो, जहाँ बड़े-बड़े कंपनियों में, लाखों लोगों को नौकरियाँ मिल गई हों।

राजद आईटी सेल से जुड़े आलोक चिक्कू ने ‘जियो तेजस्वी’ हैशटैग के साथ ट्रेंड चलाया। ,उसने सवाल खड़ा किया कि इतनी कम आबादी के बावजूद, हर जगह सवर्ण क्यों हैं? ,उसने ऐलान किया कि अब ‘सामाजिक न्याय होगा’ सदियों से हकमारी कर रहे वर्गों के होश उड़ गए हैं। वैसे लालू यादव और उनके समर्थक भी कहते रहे हैं ,कि उनके 15 वर्षों के कार्यकाल में ‘सामाजिक न्याय’ हुआ,। फिर क्या वो झूठ था? ,आलोक चिक्कू ने ऐलान किया कि, सवर्णों से छीन कर पिछड़ों में सब कुछ बाँटा जाएगा।,इसी तरह खुद को सोशलिस्ट बताने वाले ,जैकी यादव के ट्वीट्स देखिए, ,जो भारतीय क्रिकेट टीम के हर मैच के बाद, खिलाड़ियों की जाति गिनता है। ,उसने इन आँकड़ों को ऐतिहासिक बताते हुए ,इसका पूरा इतिहास गिनाया। ,इसी तरह प्रोपेगंडा पत्रकार से ,RLD नेता बने प्रशांत कनौजिया ने ,संसाधनों और भूमि पर कब्जा हटाने की बात करते हुए लिखा कि, ‘जंग का ऐलान’ हो गया है।

अब आप देखिए कि ,इन सबका माहौल कैसे बनाया गया। संसद में राजद के मनोज झा ने, ‘ठाकुर का कुआँ’ कविता पढ़ते हुए ‘अंदर के ठाकुर’ को मारने की बात कही। ,ब्राह्मण बनाम राजपूत की लड़ाई का माहौल बना कर, जातिगत जनगणना के आँकड़े सार्वजनिक कर दिए गए।,क्या इन दलों के इन समर्थकों की ,धमकियों को गंभीरता से लिया जा सकता है?

हिन्दुओं को बाँटने के लिए जाति आधारित जनगणना की साजिश

अब सवाल ये उठता है की ‘हर छीनने’ या ‘संसाधनों पर से कब्ज़ा हटाने’ से ,उनका क्या अर्थ है? क्योंकि, शिक्षित और अमीर लोग, जिस भी समाज में हैं उनके पास संसाधन हैं। ,मान लीजिए, अगर कोई स्वर्ण व्यक्ति ही है ,और उसने अपना पूरा जीवन खपा कर ,अपनी मेहनत की कमाई से जमीन खरीदी, तो क्या ‘हिस्सेदारी’ और ‘कब्ज़ा हटाने’ के नाम पर ,उसकी जमीन छीन ली जाएगी? ये तो फिर नब्बे के दशक वाला ,बिहार हो जाएगा, ,जहाँ नक्सली खुलेआम नरसंहार करते थे।

दोस्तों विपक्ष सामाजिक न्याय के नाम पर ,साल 2024 के चुनावों में ,जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर ,बीजेपी पर दबाव बनाने और, पिछड़े वोट को अपने पक्ष में करने ,की कोशिश कर रहा है,,पुराने समय से ये माना जाता था कि, कांग्रेस जाति को सम्मान के भाव से नहीं देखती है। कांग्रेस को लगता था कि ,जाति से समाज बिखरता है जुड़ता नहीं है। 2008 से 2010 के बीच ,जब महिला आरक्षण का बिल आया था ,तो कांग्रेस इसके समर्थन में थी, लेकिन इसमें OBC को अलग से आरक्षण देने के समर्थन में नहीं थी।

चूंकि अब सिर्फ कांग्रेस की बात नहीं रह गई है, अब INDIA अलायंस हो गया है ,और इस अलायंस में क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा हैं, और ये पार्टियां OBC के आरक्षण को लेकर बहुत मुखर हैं। ,महिला आरक्षण में बहस के दौरान सोनिया गांधी और राहुल गांधी ,जो भाषा बोल रहे हैं वो सरकार के खिलाफ उकसाने वाली भाषा है। इसके राजनीतिक मायने हैं। ,महिला आरक्षण का गुणा भाग 2024 के लोकसभा चुनाव में नजर आएगा। ,कांग्रेस और विपक्ष का आकलन है कि, पिछड़े वर्ग का 4 से 5% मतदाता भी शिफ्ट हो जाता है ,तो बड़ा उलटफेर हो सकता है।,आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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