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Parliament Monsoon Session: PM Modi को उनके हाल पर छोड़ दो, उन्हें बख्श दो!

Parliament Monsoon Session

Parliament Monsoon Session

Parliament Monsoon Session: मणिपुर के विषय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हो रही है। , लेकिन हमारे देश में नहीं हो रही…। यह शर्म की बात है। सदन के बाहर हंगामा । अंदर हंगामा। मानसून सत्र का तीसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया । अंदर बैठ कर पक्ष कहता है की हम चर्चा के लिए तयार है विपक्ष कहता है हम तैयार है । , स्पीकर दो टूक शब्दों मे कहते है कि आप जो भी चर्चा चाहते हैं वो होगी। लेकिन आप तय नहीं करेंगे। कि कौन जवाब देंगे।असल मे जवाब चाहिए किसको । सबको राजनीति (PM Modi) करनी है सवाल के बदले मे सवाल ही तो पूछना है ।

प्रधानमंत्री के बयान की मांग

अगर मणिपुर मे बीजेपी सरकार पर उंगली उठेगी तो । वो राजस्थान पर उठाएगी ,,,, बंगाल पर उठाएगी ,,,, पर एक्शन किसी को नहीं लेना । चर्चा किसी को नहीं करनी । वजह साफ़ है कि जो भी सत्ता मे होता है। , वो ज्वलंत मुद्दों पर बहस से कतराता है। ,, आज के प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी भी बहस से कतरा रही है। ,, मुझे सत्तारूढ़ दल और उसके नेताओं की इस बात पर कोई हैरानी नहीं है । , लेकिन विपक्ष है कि मानता ही नहीं। उसे मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री का ही बयान सुनना है। , देश की जनता जानती है। ,, कि प्रधानमंत्री मणिपुर में अपनी पार्टी। , और सरकार की,,,, अकल्पनीय नाकामी के लिए भी । आखिर मे कांग्रेस और सिर्फ कांग्रेस को कोसने वाले हैं। ,,, लेकिन विपक्ष प्रधानमंत्री के बयान की मांग छोड़कर। काम कैसे कर सकता है। ,, क्योंकि विपक्ष भी तो उसी मिट्टी का बना है। जिससे प्रधानमंत्री बने हैं

संसद सत्र छोटे होते जा रहे

हम पिछले कुछ वर्षों से देख रहे हैं ,,,,की संसद सत्र छोटे होते जा रहे हैं । ,और साल में संसद बामुश्किल 55 या 56 दिन के लिए ही बैठती है। , और उसमें भी किसी काम या चर्चा को छोड़कर । सत्ता व विपक्षी खेमे । एक-दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोपों की बौछार करते है । । , भारी शोर-शराबा मचता रहता है । , बैठकें बार-बार स्थगित होती रहती हैं। , विपक्ष का आक्रामक रुख और हंगामा उचित नहीं है। ,उसे अपनी छवि सुधारनी चाहिए। , इससे लोकतंत्र कमजोर ही होता है । , असल मे सरकार तो यही चाहती है की हंगामा हो ,,,, और चुन चुन कर एक एक विपक्षी सांसदों को बाहर निकाले ,,,, क्योंकि राज्यसभा मे आज भी सरकार अल्पमत मे है । उन्हे बिल भी तो पास करने है ,,,, हर बार अध्यादेश से काम नहीं चल सकता ,,,, लेकिन विपक्ष अनभिज्ञ रहता है। ,, यह स्थिति देश के लिये नुकसानदायी है,

सत्र की शुरुआत ही मणिपुर हिंसा पर

आपको याद होगा । पिछली बार संसद का बजट सत्र। अडानी मामले में हंगामे की भेंट चढ़ा चुका है। , तब विपक्ष अडानी समूह के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए जेपीसी गठित करने की मांग पर अड़ गया था। ,, अब मानसून सत्र की शुरुआत ही मणिपुर हिंसा पर हंगामे से हुई है। ,,इसके कारण दोनों सदनों के शुरुआती दो दिनों का कामकाज हंगामे की भेंट चढ़ चुका है। अब कोई तो अपना अड़ियलपन छोड़े! । ,सरकार नहीं छोड़े तो विपक्ष को अपना अड़ियलपन छोड़ देना चाहिए। ,,,, विपक्ष को भी प्रधानमंत्री की तरह चुनाव तैयारियों में जुट जाना चाहिए।

मणिपुर पर बहस किस प्रावधान के तहत हो

मणिपुर का मुद्दा चाहे बीजेपी के लिए बहस मुद्दा न हो। , किन्तु ये मुद्दा अब देश की सीमाएँ लांघकर दुनिया जहाँ तक पहुँच गया है। , जिस मुद्दे पर देश की संसद में बहस होनी थी। उसी मुद्दे पर दूसरे देशों की संसदें बहस कर रही हैं। ,हमारी सरकार जब विदेश की संसद को कोई उत्तर नहीं दे रही। ,, तो देश की संसद में अपना मुख कैसे खोल सकती हैं?। ,,,, मणिपुर पर बहस किस प्रावधान के तहत हो। ,,,, अभी इसी पर बहस और हंगामा हो रहा है। , विपक्ष सारे काम रोककर बहस कराना चाहता है।

मणिपुर में डबल इंजन सरकार

जबकि सरकार चाहती है कि पहले। , काम हो फिर बहस। , यानी सरकार बहस से नहीं भाग रही?। , मणिपुर पर बहस होने से मौजूदा सरकार गिरने वाली नहीं है। , ये सरकार दिल्ली सरकार के लिए बनाये गए अध्यादेश को। , क़ानून बनाने के मुद्दे पर भी नहीं गिरेगी। ,,,, वैसे भी एक गिरी हुई सरकार को। ,, गिराने के लिए कोशिश करना। , बेकार की जिद है। ,,,, मणिपुर में डबल इंजन सरकार बुरी तरह नाकाम हो गयी है। ,,, सरकार ने मणिपुर से मैतेई समाज के लोगों के पलायन के लिए । ,,खुद हवाई जहाज मुहैया कराकर अपनी नाकामी को मान लिया है,

विपक्ष प्रधानमंत्री का श्रीमुख खुलवाने की जिद छोड़ दे

ये सरकार की नाकामी है या उपलब्धि। ,, ये कहना कठिन है । विपक्ष को चाहिए कि वो प्रधानमंत्री का श्रीमुख खुलवाने की जिद छोड़ दे। ,,, उन्हें माफ़ कर दे। , मौन। , प्रधानमंत्री का सबसे बड़ा लक्षण और हथियार है। ,, वो तो पिछले पीएम से भी बड़े मौनी बाबा साबित हो रहे है । ,, प्रधानमंत्री को केवल आकाशवाणी पर बोलना आता है । मन की बात मे बोलना आता है ,,,,संसद मे नहीं । वे कैमरे के सामने बोल सकते हैं, । ,भीड़ के सामने बोल सकते हैं । ,किन्तु संसद के सामने बोलने से भय खाते हैं। , प्रधानमंत्री के मणिपुर पर बोलने से मणिपुर का भला होने वाला नहीं है। ,, मणिपुर में अराजकता से जितना नुकसान देश। और मणिपुर का होना था वो हो चुका। ,, वहां देश के लिए लड़ने वाले सैनिकों । ,और स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों के परिवारों की महिलाओं की इज्जत लूट गयी। उनकी हत्याएं की गयीं।

सरकार पर फर्क मतदाताओं की प्रतिक्रिया से

हमारी सरकार तो मंदिर बनाना जानती है। ,, गिरजाघरों से उसे क्या लेना?। , वे जलते हैं तो उसकी बला से। मणिपुर को लेकर दुनिया में भारत की बदनामी हो। ,, तो सरकार को क्या फर्क पड़ता है?। ,, देश में और खासकर हिंदुओं में तो उनका नाम हो रहा है। ,, सरकार पर फर्क तो भारत के मतदाताओं की प्रतिक्रिया से पड़ता है। ,,,अब देखना होगा कि जनता ने क्या सोच रखा है?। , मणिपुर को लेकर हमारा। आपका गुस्सा किसी काम का नहीं। ,, गुस्सा तो प्रधानमंत्री का असर दिखाता है

राहुल गांधी संसद की सदस्य्ता छोड़ सकते

पहले देश की जनता प्रधानमंत्री के रात 8 बजे दूरदर्शन पर आने से घबराती थी प्रधानमंत्री के क्रोध में भर जाने से नुकसान किसका होगा? ले-देकर कांग्रेस का। ,,,देश का तो कुछ बिगड़ना नहीं है जब विपक्ष के नेता राहुल गांधी संसद की सदस्य्ता छोड़ सकते हैं। ,, तो बहस और बयान की मांग छोड़ने में विपक्ष को क्या दिक्क्त है?। , विपक्ष को शायद नहीं पता । ,,कि प्रधानमंत्री के दौरों की जितनी ज़रूरत मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना को है। , उतनी मणिपुर को नहीं है। ,,मणिपुर की आबादी तो अकेले इंदौर या जयपुर जितनी है। ,, जबकि इन चार-पांच प्रदेशों की आबादी से आधा हिन्दुस्तान बनता है। ,, ऐसे में प्रधानमंत्री भला मणिपुर क्यों जाएँ? । ,क्यों मणिपुर पर संसद में बहस में भाग लें? । ,,,,क्यों मणिपुर पर अपना श्रीमुख खोलें?

भारत पूरी दुनिया में सबसे बड़ा लोकतन्त्र

भारत पूरी दुनिया में सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। ,, और इसके बावजूद इसकी संसद की हालत ऐसी हो गई है। , कि सदन चलता ही नहीं। ,,17वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने में । ,,अब मुश्किल से नौ महीने ही बचे हैं। , वैसे सच तो ये है की । , संसद पर पहला अधिकार विपक्ष का होता है। , क्योंकि वह अल्पमत में होता है। , मगर उसी जनता का प्रतिनिधित्व करता है। जिसका प्रतिनिधित्व बहुमत का सत्ताधारी दल करता है। ,, इसीलिए विपक्ष द्वारा उठाये गये मुद्दों और विषयों पर चर्चा कराना सत्ताधारी दल का नैतिक कर्त्तव्य है। ,,मगर हम तो देखते आ रहे हैं। , कि पिछले सत्र में जिस प्रकार एक के बाद एक विधेयक। ,, बिना चर्चा के ही संसद के दोनों सदनों के भीतर। ,, भारी शोर-शराबे के बीच पारित होते रहे।

संसद के अधिकारी ध्वनि विशेषज्ञ

यहां तक कि इस साल के बजट को भी बिना किसी चर्चा के ही। ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। ,, देश की संसद को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। , संसद हंगामे के लिए बनी है । ,,सो हंगामा करो, हंगामा होने दो । ,,और ध्वनिमत से अपना कामकाज निबटाओ, बस। ,,, हमारी संसद के अधिकारी ध्वनि विशेषज्ञ होते हैं। । उन्हें समझ में आता है कि ‘हाँ ‘ के पक्ष में बहुमत है। ,, और ‘न’ के पक्ष में अल्पमत। ,,, मानसून सत्र के दौरान । 31 नये विधेयकों को पेश या पारित करने के लिए शामिल किया गया है। , इसमें दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2023 को भी जोड़ा गया है। ,, यह विधेयक अध्यादेश का स्थान लेने के लिए रखा जाएगा। आम आदमी पार्टी इस मामले को लेकर सरकार पर निशाना लगा रही है

सड़क पर धारणा परदर्शन कर रही

सड़क पर धारणा परदर्शन कर रही है । , लेकिन आज सभी विपक्ष के नेता । भयंकर गलती कर रहे हैं । क्योंकि हम उसी संसद को थप कर रहे है । , जिसके साये में इस देश का पूरी शासन-व्यवस्था चलती है । ,,और जिसमें बैठे हुए आम जनता के प्रतिनिधि । ,,आम लोगों से ताकत लेकर। उसे चलाने की जिम्मेदारी उठाते हैं । ,और इस मुल्क के हर तबके के लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए नीतियां बनाते हैं। ,,, इन कानूनों को पारित करने में सत्ता पक्ष से ज्यादा। , विपक्ष की भूमिका है।

सभी का सहयोग बहुत जरूरी

मगर हमने पिछले सत्र में क्या देखा । , विपक्षी सांसदों ने संसद का बहिष्कार किया या उसका उसको नहीं चलने दिया और पूरा सत्र बेकार चला चला गया। मानसूत्र सत्र व्यर्थ न जाये, यह पक्ष एवं विपक्ष दोनों की जिम्मेदारी है। ,, इस सत्र में अहम विधेयक पेश किए जाने हैं। ,, जिन पर भविष्य की नींव टिकी हुई है ,,,, ऐसे में सभी का सहयोग बहुत जरूरी है। , सभी दलों को सत्र चलाने में मदद करनी होगी। , संसद केवल वाद-विवाद का प्रतियोगिता स्थल नहीं होती। ,,बल्कि लोकहित व राष्ट्रहित में फैसला करने का सबसे ऊंचा मंच होती है। ,,अब सवाल ये उठता है । की यदि केवल बिना बहस कराये ही। ,, भारी शोर-शराबे के बीच । ,ध्वनिमत से ही विधेयक पारित कराने हैं । तो संसद का क्या औचित्य है ?आपकी इस पर क्या राय है कमेन्ट करके जरूर बताएँ

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