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ये 7 तकनीक हैं शहरी ट्रांसपोर्टेशन का Future

दोस्तो सड़कों पर बेतहाशा भीड़ के बीच रेंगती गाड़ियां, कई-कई किलोमीटर लंबा ट्रैफिक जाम, रेड लाइट्स पर अटकी ट्रैफिक की रफ्तार, मेट्रो ट्रेनों की धक्का-मुक्की और इन सब परेशानियों से जूझता शहरी जीवन… कमोबेश ये नजारा दिल्ली-मुंबई समेत भारत या कहें तो एशिया के अधिकांश शहरों के आज के ट्रांसपोर्ट सिस्टम की हकीकत है. लेकिन दुनिया तेजी से बदल रही है और उतनी ही तेजी से दुनियाभर के मॉडर्न शहरों में ट्रांसपोर्ट की सुविधाएं भी.

दोस्तों आज हम आपको बताएंगे कि दुनिया के तमाम आधुनिक शहर ट्रांसपोर्ट के कौन से फ्यूचर टेक्नोलॉजी को अपना रहे हैं और जो निकट भविष्य में हमारे शहरों की जिंदगी का भी हिस्सा बन सकती हैं. सड़कों पर, पटरियों पर और यहां तक कि आसमान में शुरू हो रहे ट्रांसपोर्ट के ये 7 फ्यूचर मोड हैं जो भारतीय शहरों में भी आने वाले सालों में दिख सकते हैं-

पॉड टैक्सी

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रैपिड ट्रेनों के बाद हमारे शहरों में जो ट्रांसपोर्ट सिस्टम सबसे जल्दी आते दिख रहा है वह है पॉड टैक्सी. भारत में सबसे पहले दिल्ली से सटे नोएडा शहर में पॉड टैक्सी चलाने की योजना है जो आसपास के इलाकों को एनसीआर में बन रहे जेवर एयरपोर्ट से जोड़ेगी. भारतीय पोर्ट रेल और रोपवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड की ओर से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 14.6 किमी लंबा होगा. नोएडा में शुरू होने वाली पॉडी टैक्सी दुनिया की सबसे लंबे रूट वाली पॉड टैक्सी होगी. इसमें 12 स्टेशन होंगे और 37 हजार यात्री हर दिन सफर कर सकेंगे.

फ्लाइंग टैक्सी

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आपने फिल्मों में उड़ने वाली कारों को तो देखा होगा लेकिन सोचिए अगर आपके शहर के आसमान में चारों ओर उड़ने वाली कारें दिखें तो कैसे नजारा हो. सोचिए अगर आप टैक्सी बुक करें और वो आपके घर की छत या बालकनी से आपको रिसीव कर ले जाए और पल भर में आपकी मंजिल तक पहुंचा दे. ये कोई सपना नहीं है बल्कि दुनिया इस हकीकत को हासिल करने के बहुत करीब है. आज दुनिया में करीब 20 कंपनियों ने फ्लाइंग टैक्सी का प्रोटोटाइप पेश किया है. ना सिर्फ अमेरिका बल्कि मेड इन इंडिया फ्लाइंग टैक्सी का मॉडल भी सामने आ चुका है.

अमेरिका के कई शहर और दुबई समेत कई शहरों में कंपनियों ने फ्लाइंग टैक्सी चलाने का प्रपोजल पेश किया है. शहरों के आसमान में कैसे सुरक्षित फ्लाइंग टैक्सी को चलाया जाए इस बारे में टेस्टिंग के कई दौर के बाद इनको मंजूरी मिल सकती है.भारत में भी चेन्नई की एक कंपनी ने देश की पहली उड़ने वाली इलेक्ट्रिक टैक्सी को 2024 के अंत तक लाने का दावा किया है.

ड्राइवरलेस कारें

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ड्राइवरलेस कारें यानी जिन्हें चलाने के लिए किसी इंसान की जरूरत नहीं हो. यानी ऐसी कारें जो सेल्फ ड्राइविंग हो, ऑटोपायलट तरीके से सड़क के सिगनल्स को समझकर खुद कमांड ले और सेंसर टेक्नीक की मदद से स्पीड, दूसरी गाड़ियों से दूरी आदि को भी खुद नियंत्रित करें. सेल्फ ड्राइविंग या ड्राइवरलेस कारें कई आधुनिक देशों में आज हकीकत का रूप ले चुकी है,,सेल्फ ड्राइविंग कारें चलाने के लिए हाईटेक कंट्रोल सिस्टम के साथ सेंसर, कैमरा, नेविगेशन के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें लगे सेंसर सड़कों पर आगे के रास्ते, सिग्नल्स, दूसरी गाड़ियों से दूरी आदि को जहां खुद समझकर कमांड लेते हैं वहीं डेटा के जरिए धीरे-धीरे अपनी यात्रा को तेज और सटीक बनाते जाते हैं.

मैग्लेव ट्रेन

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मैग्लेव ट्रेनों को रेल यातायात की दुनिया के चमत्कार के तौर पर दुनिया में देखा जा रहा है. बुलेट ट्रेनों से भी आगे की टेक्नीक इसे माना जाता है. खास बात ये है कि इनमें लोहे के पारंपरिक पहिये नहीं होते, बल्कि यह मैग्नेटिक लेविटेशन यानी मैग्लेव से चलती है. इस तकनीक में पटरियों में मैग्नेटिक प्रभाव रहता है और ट्रेन इन पटरियों से कई इंच ऊपर हवा में रहती है. चीन, दक्षिण कोरिया, जापान मैग्लेव ट्रेन इस्तेमाल करने वाले दुनिया के शुरुआती देश हैं,,मैग्लेव ट्रेन पटरी पर दौड़ने की बजाय हवा में रहती है. इसके लिए ट्रेन को मैग्नेटिक फील्‍ड की मदद से नियंत्रित किया जाता है. इसलिए उसका पटरी से कोई सीधा संपर्क नहीं होता. इसमें ऊर्जा की भी बहुत कम खपत होती है और यह आसानी से 500 से 600 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ सकती है.

डिलीवरी ड्रोन

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ट्रांसपोर्टेशन के आधुनिक साधनों में सामान पहुंचाने के लिए डिलीवरी ड्रोन की तकनीक का इस्तेमाल भी बहुत तेजी से बढ़ रहा है. दुनिया की कई बड़ी कंपनियां आज डिलीवरी ड्रोन का इस्तेमाल करने लगी हैं. यहां तक कि अमेजॉन जैसी बड़ी कंपनियां तो ऑटोपायलट ड्रोन्स का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर सामानों की डिलीवरी दूर-दराज के ठिकानों पर या एयरपोर्ट या बंदरगाहों तक करने लगी है.अमेरिका के कई शहरों में घर-घर दवाएं पहुंचाने से लेकर घरेलू सामानों की डिलिवरी तक कंपनियां डिलिवरी ड्रोन का इस्तेमाल करती हैं.

अंडरग्राउंड सड़कें

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दुनियाभर में हर जगह अंडरग्राउंड सड़कों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में मौजूद सड़कों की कुल लम्बाई करीब साढ़े 6 करोड़ किलोमीटर तक है. जबकि दुनियाभर में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, नए इलाके बस रहे हैं, नए शहर बनाए और बसाए जा रहे हैं ऐसे में आने वाले वक्त में सड़कों की और ज्यादा जरूरत होगी,,शहरों, कस्बों या गांवों में हर जगह रह रहे लोग अब ज्यादा कारें खरीद रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक साल 2040 तक सड़कों पर करीब 200 करोड़ कारें होंगी.यानी आज की तुलना में सड़कों पर 50 फीसदी तक ट्रैफिक और बढ़ जाएगा.

हाइपरलूप ट्रेनें

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टेस्ला सीईओ एलॉन मस्क ने पहली बार साल 2012 में हाइपरलूप तकनीक का विचार सामने रखा था. इस तकनीक से ट्रेनों को ट्यूब के अंदर चलाया जाता है और इस कारण स्पीड बहुत तेज रखना संभव हो पाता है बल्कि 1000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से ट्यूब के अंदर पॉड दौड़ सकेगी.आने वाले सालों में भारत समेत कई देशों में ट्रांसपोर्टेशन का सबसे आधुनिक माध्यम हाइपरलूप ट्रेनें बन सकती हैं. हाइपरलूप एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से दुनिया में कहीं भी लोगों को या वस्तुओं को तेजी से और सुरक्षित पहुंचाया जा सकेगा. इससे पर्यावरण पर भी कम से कम प्रभाव पड़ता है.

दोस्तों दुनिया की बढ़ती आबादी, शहरीकरण, शहरों की भीड़ और क्लाइमेट चेंज की चुनौतियां ऐसे कई कारण हैं जो ट्रांसपोर्ट सिस्टम में बदलाव को जरूरी बना देती हैं और अगर इन समस्याओं से निजात पाना है तो नई टेक्नीक को अपनाना होगा. और ऐसे में दुनिया के सबसे आधुनिक शहरों से सबक लेकर उनकी तकनीक को अपने शहरों की प्लानिंग में शामिल किया जा सकता है |

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