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बिहार के इस पेड़ पर पत्तों और फल से ज्यादा दिखते हैं स्त्री -पुरुषों के कपड़े, कारण जानकर होगी हैरानी

बेर का पेड़ आमतौर पर हर जगह दिख जाता है। लेकिन बिहार के सारण जिले में बेर का ये पेड़ खास है। यहां फल और पत्तेे से अधिक कपड़े दिखते हैं। साड़ी, शर्ट, पैंट, गमछा, मवेशियों की रस्सीी आदि से यह पेड़ लदा हुआ है। सैकड़ों की संख्याे में कपड़े टंगे हुए हैं। मान्यणता है कि बेर का यह पेड़ बिछड़ों को अपनों से मिलाता है। यहां न केवल इंसान बल्कि पशुओं के गुम होने पर भी लोग पहुंचते हैं। हर धर्म-समुदाय के लोग यहां आते हैं। वे मन्नसत मांगते हैं। लोगों का कहना है कि मन्नरतें पूर्ण होने की वजह से इस पेड़ के प्रति काफी आस्थान है। यही कारण है कि बिहार के कई जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग भी यहां आते हैं।

कब्रिस्ताकन परिसर में है बेर का पेड़

सारण जिला मुख्यालय से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मढ़ौरा प्रखंड के ओलहनपुर पंचायत में बेर का ये पेड़ है। बेर के पेड़ की वजह से इस स्थालन का नाम बै‍रिया बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। सिर्फ छपरा ही नहीं बल्कि कई राज्यो से लोग यहां पहुचते हैं। वे इस पेड़ पर बिछड़े लोगों के कपड़े टांग देते हैं। कोई मवेशी गुम हो गया तो उसकी रस्सीस लोग टांग जाते हैं। यहां कपड़े और रस्सीग टांगने वालों को गुमशुदा या बिछड़े मिल गए इस कारण इसके प्रतिस विश्वांस दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

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बिहार के इस पेड़ पर पत्तों और फल से ज्यादा दिखते हैं स्त्री -पुरुषों के कपड़े, कारण जानकर होगी हैरानी 3

गुजरात से लेकर यूपी तक के लोग आते हैं कपड़े टांगने
स्थानीय लोगों की माने तो यहां बिहार के कई जिलों के अलावा गुजरात, असम, यूपी तक के लोग दशकों से आते रहे हैं। जिनके अपने बिछड़े होते है वो उनके बदन से उतरे पुराने कपड़े डाल जाते हैं। जिनके अपने बिछड़े या गुमशुदा लोग मिल जाते हैं तो मिठाइ चढ़ाई जाती है। स्थानीय कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि उनके देखते-देखते कई पेड़ पौधे खत्मम हो गए। कई आंधी-तूफानाें में धराशायी हो गए लेकिन बेर का यह पेड़ जस का तस है। ओलहनपुर में कब्रिस्तान की चारदीवारी के अंदर इस बेर के पेड़ के नीचे तत्कालीन विधायक लालबाबू राय ने चबूतरा का निर्माण कराया था, जिस पर स्पष्ट शब्दों में बैरिया बाबा स्थान लिखा हुआ है।

आज भी हजारों कपड़े से लदा है यह बेर का पेड़

ऐसा नही है कि यह कोई पुरानी कहानियां है, बल्कि पेड़ो पर टंगे न जाने कितने कपड़े आंधियों में उड़ गए, बावजूद आज भी इस पेड़ पर महिलाओंं-पुरुषों व बच्चों के सैकड़ों कपड़े टंगे हुए है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस स्थान पर जाति और मजहब का कोई भेदभाव नहीं है। सभी जाति और धर्मो के लोगों के लिये यह पेड़ आस्था का केंद्र है ।

गुम हुए मवेशी भी मिल जाते हैं

यहां पुराने कपड़े टांगने पर सिर्फ जीवित इंसान ही वापस आते है, जबकि यदि कोई आपका पालतू जानवर गुम हो जाये तो उसके लगाम, नाथ, पगहा या खूंटा इस जगह फेंकने के बाद वो भी वापस आ जाता है।

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