चुनाव

INDIA Alliance : Election Result से I.N.D.I.A. गठबंधन में Congress की स्थिति हुई कमजोर

INDIA Alliance : दोस्तों जनादेश आ गया है। लोगों ने अपने मन की बात बता दी है। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश और वहां से लेकर छत्तीगढ़ तक सब तरफ मोदी ही मोदी हैं। प्रदेशों के चुनावों में भी मोदी! चुनावी नतीजों ने एक बात तो साबित कर दी है, कि देश में मोदी का मैजिक (Election Result) अभी जिंदा है कांग्रेस के लिए यह चुनाव किसी भारी झटके से कम नहीं है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को लोकसभा चुनाव में पटखनी देने के लिए बनी इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। अब इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला क्या होगा? क्या अब लोकसभा चुनाव से पहले INDIA गठबंधन टूट जाएगा

दोस्तों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को (I.N.D.I.A. ) मिली हार के बाद अब क्षेत्रीय दलों के लिए लोकसभा चुनाव से पहले सीट शेयरिंग को लेकर मोलतोल करना आसान हो गया है। बिहार की बात करें तो यहां नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू प्रसाद यादव की आरजेडी सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस पर दबाव की राजनीति भी कर सकती है। नीतीश कुमार ने तो पहले की कह दिया था कि कांग्रेस (Congress) का सारा फोकस विधानसभा चुनाव पर है इसीलिए सीट शेयरिंग को लेकर अभी तक कोई फाइनल बात नहीं हो पा रही है। वहीं कुछ दिन पहले आरजेडी प्रमुख लालू यादव का बयान सामने आया था कि नीतीश कुमार का कोई मुकाबला नहीं है।

हार के बाद राहुल का क्या होगा

कौन भूल सकता है उस समय को जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर बड़ा आरोप लगाते हुए कह दिया था कि मद्य प्रदेश में पार्टी द्वारा पहले सीट शेयरिंग के लिए कई मीटिंग में बुलाया गया और फिर एक भी सीट पर लड़ने का मौका तक नहीं दिया। कौन भूल सकता है के जेडीयू की उस डिमांड को ,,,जहां पर उसने एमपी में कुछ ही सीटों पर टिकट मांगी थी। लेकिन इसे अब कांग्रेस का ओवर कॉन्फिडेंस कहा जाए या कोई रणनीति उसने किसी भी इंडिया गठबंध के नेता को तवज्जो नहीं दी

इसी तरह राजस्थान में भी पार्टी ने अपने सहयोगी दलों को ठेंगा दिखाने का काम किया। अब इस एकला चलो नीति का परिणाम ये रहा है कि कांग्रेस को करारी हार मिली है। अब पूरे इंडिया को संदेश ये है कि आने वाले हर चुनाव में साथ में ही चुनाव लड़ना होगा और अगर किसी तरह का गठबंधन नहीं हुआ है तो उतना तालमेल तो बैठाना ही पड़ेगा कि एक नेता दूसरे सहयोगी दल के नेता को निशाने पर ना ले।

इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को लेकर उसे आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मुख्य विपक्षी दल अपने दम पर जीतने में सक्षम नहीं है। जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस की पराजय और भाजपा की विजय का संकेत देते हैं। उन्होंने कहा कि चुनावों में विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन गायब था।

महागठबंधन जैसा तो नहीं होगा INDIA गठबंधन का हाल

आपको बता दे की बिहार के 2015 के चुनाव के महागठबंधन की शुरुआत हुई थी. ,इसमें आरजेडी, जेडीयू , कांग्रेस, वाम पार्टियां, और जीतनराम मंझी की पार्टी,, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा, शामिल हुई थी. शुरू में समाजवादी पार्टी ने भी महागठबंधन में शामिल होने का मन बनाया था लेकिन सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर उसने खुद को अलग कर लिया था. महागठबंधन ने 2015 के चुनाव में बिहार में भारी जीत हासिल की थी और नीतीश कुमार के नेतृत्व में इसकी सरकार बन गई. 2017 में महागठबंधन में उस वक्त सेंध लग गई जब नीतीश कुमार ने एक बार फिर एनडीए का दामन पकड़ लिया और सरकार से इस्तीफा दे दिया था..

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावी परिणाम आने के बाद खराब प्रदर्शन को देखकर जनता दल यूनाइटेड ने कांग्रेस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. जेडीयू के प्रदेश महासचिव निखिल मंडल ने ट्वीट किया की अब ‘इंडिया गठबंधन’ को नीतीश कुमार के अनुसार चलना चाहिए.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार पर निराशा जताते हुए कहा कि उनका दल इन राज्यों में खुद को मजबूत करेगा तथा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों के साथ मिलकर अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपने आपको तैयार करेगा।

चार राज्यों के चुनाव नतीजों की घोषणा के बीच विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक बुलाने की घोषणा कर दी गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गठबंधन में शामिल सभी 28 पार्टियों को छह दिसंबर को दिल्ली बुलाया है। बताया गया है कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजों पर चर्चा की जाएगी।

गौरतलब है कि ‘इंडिया’ की आखिरी बैठक 30 अगस्त और एक सितंबर को मुंबई में हुई थी। उसके बाद कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त हो गई और फिर कोई बैठक नहीं हुई। कांग्रेस ने सीट बंटवारे वगैरह की बात भी रोक दी थी क्योंकि कांग्रेस नेताओं को लग रहा था कि पांच राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करने से उसकी मोलभाव करने की क्षमता बढ़ेगी। लेकिन जैसा उन्होंने सोचा एस कुछ भी नहीं हुआ

हार के बाद INDIA गठबंधन में मिलने लगी नसीहत

नतीजों से सब उलटा हो गया। कांग्रेस जहां सबसे मजबूत मानी जा रही थी वहां भी हार गई। छत्तीसगढ़ में वह बुरी तरह से हारी है तो मध्य प्रदेश में जहां उसकी जीत पक्की मानी जा रही थी वहां तो वह पिछली बार के मुकाबले भी बहुत पीछे रह गई। राजस्थान में भी उसने सत्ता गंवा दी। सांत्वना के लिए एक तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनी है। इसलिए अब ‘इंडिया’ की बैठक में या सीट बंटवारे की बातचीत में प्रादेशिक पार्टियां हावी रहेंगी।

वे कांग्रेस पर दबाव बनाएंगी कि उसे कम सीटों पर लड़ना चाहिए और प्रादेशिक पार्टियों को ज्यादा सीटें देनी चाहिएं। बिहार से लेकर झारखंड और पश्चिम बंगाल से महाराष्ट्र तक में कांग्रेस ने मोलभाव करने की अपनी ताकत गंवा दी है। विपक्षी दलों के लिए असल विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या बिना राजनीति की नई परिकल्पना किए और बिना राजनीति करने के नए तरीके ढूंढे वे कभी भी भाजपा को चुनौती दे पाएंगे?

अब सीख ये इंडिया गठबंधन को मिल तो रही है लेकिन कांग्रेस की हार के बाद। असल में एमपी-राजस्थान में देखा गया कि अरविंद केजरीवाल ने काफी प्रचार किया। सीधे-सीधे कांग्रेस को उखाड़ फेंकने की बात कर दी उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए। अब केजरीवाल की पार्टी को तो इन चुनावों में कोई फायदा नहीं हुआ लेकिन ये जरूर रहा कि जनता के मन में सवाल आ गया कि एक ही साथ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस समय एक दूसरे के पीछे ही क्यों पड़े हैं? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था ऐसे में जनता ने अपने वोट से इस धूमिल सियासी चश्मे को साफ करने का काम कर दिया।

दोस्तों सवाल है मोदी-शाह की इस विधानसभा रिहर्सल से विपक्ष और खासकर राहुल, अखिलेश, नीतीश कुमार को क्या लोकसभा चुनाव की तैयारियों में कुछ समझ आएगा? कांग्रेस की दुर्दशा से अखिलेश, नीतीश, केजरीवाल, चंद्रशेखर आजाद, मायावती का अहंकार क्या बढ़ेगा या ये समझेंगे कि बिना एकजुटता के लोकसभा चुनाव में सभी का सूपड़ा साफ गारंटीशुदा है।

और सबसे बड़ा सवाल खड़गे, राहुल, प्रियंका से लेकर एआईसीसी के तमाम कथित प्रबंधक या कन्हैया जैसे सलाहकार पिछड़ों की राजनीति भारत यात्रा से भारत क्रांति के फलसफों को छोड़ कर जमीनी हकीकत को समझेंगे भी या नहीं? आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है , हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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