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Banking System Under Modi Rule: गरीबों को लूटो और अमीरों की तिजोरी भरो

Banking System Under Modi Rule: देश में जहां नागरिकों को दी जाने वाली । ,छोटी-छोटी सब्सिडी पर सवाल उठाए जा रहे हैं,,, इन्हें रोकने की पैरोकारी की जाती है,,, उन्हें ‘रेवड़ी’ संस्कृति कहकर,। , इसका मजाक बनाया जाता है ,,और इसी पर राजनीतिक बहस चलाई जाती है,,, जैसे कि भारत के लोग भिखारी हों,। , और उनके लिए छोटी-छोटी मुफ्त चीजें या सुविधाएं ही,। ,, सबसे बड़े कारक हैं,,,देश के घाटे के लिए । ,, लेकिन देश मे एनपीए अगर सबसे बड़ा घाटे का कारण है तो वो है npa,। सब्सिडी और ‘रेवड़ियों’ की जगह ,,एनपीए को,, चर्चा के केन्द्र में होना चाहिए?

npa घट गया

गरीबों को लूटो और अमीरों की तिजोरी भरो मोदी राज में,। बैंकिंग का नया सिद्धांत यही कहता है । और पीएम मोदी भ्रष्टाचार को लेकर,। पिछली सरकार पर निशाना साधते है,। 70 साल का हवाला देते है , और कहते है, कि आज भारत उन देशों में से एक है, जहां का बैंकिंग सेक्टर सबसे मजबूत माना जाता है npa घट गया है । पिछले 10 साल मे । ज़रा सुनिए

बैंकिंग सेक्टर सबसे मजबूत

सुना आपने,,,,,,भारत उन देशों में से एक है जहाँ का बैंकिंग सेक्टर सबसे,, मजबूत माना जाता है,,,, लेकिन नौ वर्ष पहले ऐसी स्थिति नहीं थी,,,,पीएम मोदी कहते हैं कि,,,,,,पिछली सरकारों में फ़ोन बैंकिंग भी नहीं थी,,, किसी ने सोचा नहीं था,। ,बैंकिंग सेक्टर बर्बाद हो चुका था,,पिछली सरकारों में फ़ोन से लोन दिलाए जाते थे,, और लोन चुकाने के लिए भी लोन दिया जाता था,। ,दोस्तों पिछली सरकार में ऐसा होता था,,, तो आज की सरकार में क्या होता है?। ,आप ये खबर देखिए …इसकी हेड्लाइन आप देखिये कि,,, रुचि सोया के लिए रामदेव ने लिया था,। 3200 करोड़ का लोन ,,आपको बता दु की।

पूर्व सरकारों में और वर्तमान सरकार में कोई अंतर नहीं

रुचि सोया वो कंपनी थी जो,। ,, दिवालिया हो गई थी और । ,,उसको खरीदने के लिए भी रामदेव को लोन दिया गया था।,,,यानी एक कंपनी ,,जो लोन नहीं चुका पाई,, जो कंपनी दिवालिया हो चुकी थी, ,,उसको खरीदने के लिए रामदेव को लोन दिया गया,। ,, उसे खरीदने के लिए पतंजलि को लोन मिलना दिखाता है कि ,,पूर्व सरकारों में और वर्तमान सरकार में कोई अंतर नहीं है।। ,, और रही बात बैंकिंग सेक्टर की । ,तो ये दिन आरोप लगते रहते है । काभी कोई उद्योगपति ,,,,,देश का पैसा लेकर भाग गया ,,, काभी कोई ,,, बैंको का पैसा लेकर पता नहीं कितने भाग गए । , और थोड़ा बहुत नहीं करोड़ों अरबों रुपये

बैंकिंग सेक्टर के काम करने का तरीका

बैंकिंग सेक्टर के काम करने का तरीका ऐसा है ,,कि मामूली लोन लेने वालों की तो,। ,गिरेबान पकड़ लो , लेकिन बड़े लोन वालों को ,,,,,यूं ही जाने दो।,, ,,,,,वैसे, भारतीय बैंकिंग सिस्टम के लिए,,,, आजकल एक कहावत है ,,,, ‘की अगर आप पर,। , बैंक का 100 रुपये का लोन है,,,,, ,,तो यह आपकी समस्या है,। , लेकिन अगर आप पर 100 करोड़ रुपये का लोन है,। ,, तो यह बैंक की समस्या है।’

कोई व्‍यक्ति जानबूझकर लोन न चुकाए

मोदी जी ने अपने भाषण मे एक शब्द और बोला है । , वो है npa । ,एनपीए बैंकिंग कारोबार का ही एक हिस्सा होता है। ,,लोन देंगे । ,,,, तो कुछ वापस नहीं भी आएंगे,। ,,, लोन देने के कारोबार की प्रकृति ही ऐसी है। ,,, ,,, दरअसल जब कोई व्‍यक्ति लोन लेता है,। , तो बैंक उसकी कर्ज चुकाने की क्षमता का आकलन ,,करने के बाद ही लोन देते हैं,,. लेकिन कर्ज चुकाने की हैसियत रखने के बावजूद ,,अगर कोई व्‍यक्ति जानबूझकर लोन न चुकाए, ,,तो उसे विलफुल डिफॉल्टर कहा जाता है.,, जब इस तरह के व्यक्ति या कंपनी से कर्ज वापसी की उम्मीद नहीं रहती ,,तो बैंक इस तरह के कर्जों को ,,राइट ऑफ कर देते हैं,, यानी बट्टे खाते में डाल देते हैं,। ,, यह कर्जमाफी नहीं है,,, बल्कि ऐसे कर्ज को ,करीब-करीब डूबा यानी NPA मान लिया जाता है.। ,, लेकिन क्या हाल के दिनों में । ,,जमीनी हकीकत बदल गई है,,? पिछली सरकार और इस सरकार मे बैंको की हालत सुधार गई है ,,,, क्या npa सच मे घट गया है । , खबरें तो ऐसा ही कह रही हैं,।

28 जून को जारी आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट

28 जून को जारी आरबीआई की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट भी यही कहती है । , जो खबरें पिछले कुछ हफ्तों के दौरान छपी हैं,,, ,, वे बताती हैं कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए,। , नाटकीय रूप से गिरकर 10 साल के निचले स्तर पर आ गया है,। , रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023 में कुल एनपीए 3.9% रहा ,,जबकि 2018 में यह 11.5% था,। लेकिन इस दौरान में । , उधार में भी खासा इजाफा देखा गया है । जो 2018 में 83.6 लाख करोड़ रु से बढ़कर,। , 2023 में 135 लाख करोड़ हो गया,। , उधार के बढ़े आधार पर । । , कुल npa के प्रतिशत में आई गिरावट ,,,,,सही तस्वीर नहीं दिखाती,,,, अगर इस विषय को एनपीए की संख्या के आधार पर देखा जाए,। , तो एक अलग ही तस्वीर सामने आएगी।,, अगर पुराने एनपीए की संख्या इस वजह से गिर गई कि,। , इसमें भारी कटौती की गई और,, तमाम उधार को बट्टे खाते में डाल दिया गया,। ,,, फिर भी नए एनपीए सिस्टम में जुड़ते रहे, ,,तो यह एनपीए के प्रबंधन और सार्वजनिक पैसे की सुरक्षा के तौर-तरीकों पर बड़े सवाल खड़े करता है।

1.79 लाख करोड़ रुपये के उधार को बट्टे खाते में डाल दिया

2021-22 में कुल एनपीए 5.8% था जो 7.44 लाख करोड़ रुपये था,, जबकि साल के शुरू में एनपीए 8.35 लाख करोड़ था। इसमें आई गिरावट का कारण यह था ,,कि 1.79 लाख करोड़ रुपये के उधार को बट्टे खाते में डाल दिया गया।,, लेकिन जब 2021-22 खत्म हुआ, तो 2.83 लाख करोड़ रुपये के नए एनपीए खड़े हो गए थे।,,, दोस्तों हकीकत यह है कि,, पिछले पांच सालों में ,,जब कुल एनपीए 9.2% से घटकर 5.8% हो गया है,,, इस दौरान बट्टे खाते में डाली गई रकम 10.25 लाख करोड़ की रही। इसके साथ ही इस अवधि के दौरान 20 लाख करोड़ रुपये से,, कुछ ही कम के नए एनपीए हो गए। दी गई अवधि में साल-दर-साल, नया एनपीए बट्टे खाते में डाले गए ,,या वसूली गई राशि से कहीं अधिक रहा है।,, जहाज के पुराने छेद को ‘दुरुस्त’ किया जा रहा है,, जबकि इसी दौरान उससे बड़े छेद बन जा रहे हैं। ,,क्या यह जहाज समुद्र में तैरे सकेगा? ,,तैरना तो दूर, इसका तो एक जगह खड़ा रहना मुश्किल है

कुल एनपीए प्रतिशत में गिरावट का कारण

कुल एनपीए प्रतिशत में गिरावट का कारण क्या है?,, मजबूत रिकवरी हुई हो तो अच्छी बात है,। , लेकिन अगर ऐसा उधारी को । ,बट्टे खाते में डालने से हुआ है,, तो बुरा है,। , अगर हम ,,व्यवस्था के लिहाज से भी देखें तो,, एनपीए की समस्या में कोई सुधार नहीं हो रहा,। हमारी बैंकिंग व्यवस्था को तभी मजबूत माना जा सकता है ,,जब हम बेहतर मूल्यांकन, निगरानी, पर्यवेक्षण, नियंत्रण और प्रशासकीय व्यवस्थाओं की ओर बढ़ें,। , लेकिन हम तो इसके करीब भी नहीं हैं,।

बट्टे खाते में डालने की इजाजत दे दी

आंकड़े बताते हैं कि हर तरफ ढिलाई है ,,और एनपीए को लेकर हमारे यहां ,,कोई चेतावनी प्रणाली नहीं है ,,जिससे लगता है कि सिस्टम ने ,,इस संदेश को मन में बैठा लिया है,, कि भारत में तो काम ऐसे ही होगा।,,, लेकिन जान-बूझकर उधार न चुकाने वालों के खिलाफ सख्ती ,,या उन्हें शर्मिंदा करने की कोई इच्छा ही नहीं दिखती।,, इसके बजाय, नियामक ने,, बैंकों को जानबूझकर उधार न चुकाने वालों के तौर पर,,,, समझौता करने,। मामले को निपटाने या फिर उधार को तकनीकी ,,बट्टे खाते में डालने की इजाजत दे दी है। ,,समझौता का विचार ही साफ संकेत देता है ,,,कि हम ‘मोल-तोल’ के लिए तैयार हैं ,,और एक छोटी सी समय सीमा के बाद ,,आप दोबारा उधार भी ले सकते हैं

दोनों को ही जिम्मेदार ठहराया

और उन्हीं लोगों के आगे बढ़ने का रास्ता खोलता है ,,,जो नियमों को तोड़-मरोड़कर ‘खेल’ सकते हैं।। ,,, लेकिन यह वैसे विकास के लिए रुकावट है,, यह भारत के लोगों का पैसा है ,,और अगर बैंक,। , परियोजनाओं की वास्तविकता और धन के अंतिम उपयोग ,,की निगरानी नहीं कर सकते हैं, ,,तो उधार देने वाले और उधार लेने वाले- ,,दोनों को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए,,। अगर ऐसा नहीं होता है तो साफ है कि ,,एनपीए गरीब जनता को लूटकर ,,अमीरों की तिजोरी भरने का जरिया छोड़कर और ,, कुछ भी नहीं

देश के संसाधन आखिर गये कहाँ?

आखिर सारा धन जा कहाँ रहा है?,, ,,,सरकार पर ऋण दोगुना हो गया, ,,सरकारी बैंक,, NPA की मार से दिवालिया होने की कगार पर है ,,,,विकास के नाम पर शून्य है,,.नया कुछ बना नहीं है.,,जनता टैक्स के बोझ से मारी जा रही है…युवा बेकार है.,,,खजाना खाली है.,,,तो फिर देश के संसाधन आखिर गये कहाँ?,,, क्या सब्सिडी और ‘रेवड़ियों’ की जगह ,,एनपीए को,, चर्चा के केन्द्र में नहीं होना चाहिए? । ,,, आपकी इस पर क्या राय है कमेन्ट करके जरूर बताएँ

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