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Haryana New CM: BJP आलाकमान PM Modi ने क्यों की Manohar Lal Khattar की विदाई ?

Haryana New CM: एक दिन पहले जिन मनोहर लाल खट्टर की पीएम मोदी (PM Modi) ने खुले मंच पर तारीफ की थी, मोदी ने गुरुग्राम में द्वारका एक्सप्रेसवे के उद्घाटन कार्यक्रम में मनोहर लाल खट्टर की बाइक पर रोहतक से गुरुग्राम के सफर का जिक्र करते हुए कहा था कि यहां कभी छोटे रोड हुआ करते थे लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। आज हरियाणा (BJP) का भविष्य सीएम खट्टर के नेतृत्व में सुरक्षित है। इससे पहले जनवरी में भी पीएम नरेंद्र मोदी ने खट्टर की तारीफ करते हुए ‘बहुत मजबूत आदमी’ बताया था। ये सही है दोस्तों पहले खिलाया ,,पिलाया तारीफ़ों के पुल बांधे और फिर पुल को ढा दिया गया

जी हाँ, मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) को सीएम पद छोड़ना पड़ा। बीजेपी नेतृत्व ने ओबीसी चेहरा नायब सिंह सैनी को राज्य की कमान सौंपी है। खट्टर को अचानक से मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि आखिर बीजेपी ने ऐसा क्यों किया? क्या किसान आंदोलन, पहलवानों का प्रदर्शन चुनाव में पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेर सकता है। क्या एंटी-इनकमबेंसी को कम करने की चाल है या फिर कोई और वजह?

हरियाणा में BJP ने क्यों बदला CM?

हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को हटाए जाने से भाजपा आलाकमान यानी पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह साबित कर दिया कि वो 2024 का चुनाव जीतने के लिए मामूली सी कसर भी नहीं छोड़ना चाहते। खट्टर के क्रिया कलापों से भाजपा हरियाणा में गैर पंजाबियों यानी ओबीसी और जाट पर पकड़ खोती जा रही थी। भाजपा के पास कई दशक से लोकप्रिय जाट नेता का अभाव रहा है। और जब देश भर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ओबीसी का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं तो मोदी और शाह ने पंजाबी खट्टर को हटाकर ओबीसी नायब सैनी को हरियाणा का ताजा सौंप दिया।

नायब सैनी के बारे में बड़े से बड़े विश्लेषकों का दूर दूर तक दावा नहीं था कि भाजपा का यह आम सा नेता मुख्यमंत्री बन सकता है। लेकिन मोदी ऐसा ही चमत्कार करते रहे हैं। लेकिन नायब सैनी के बदलाव ने बड़े संकेत कर दिए हैं। नायब सिंह सैनी को हरियाणा के अगले मुख्यमंत्री के रूप में चुनने की घोषणा अचानक और अप्रत्याशित थी लेकिन यह असामान्य नहीं है। याद कीजिए 2014 में मनोहर लाल खट्टर को इस पद के लिए नामित मोदी-अमित शाह ने ही तो किया था। बहुत दिनों तक खट्टर को पैराशूट मुख्यमंत्री कहा जाता रहा। क्योंकि खट्टर के नाम की भी चर्चा 2014 में कहीं दूर-दूर तक नहीं थी। हालांकि, इस बीच किसान आंदोलन से लेकर तमाम अन्य मुद्दों की वजह से खट्टर सरकार के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी बनने लगी थी।

भाजपा में 54 साल के नायब सैनी एक लो-प्रोफाइल ओबीसी नेता के रूप में अचानक ही उभरे और मंगलवार को चंडीगढ़ में एक बैठक में सर्वसम्मति से राज्य भाजपा के विधायक समूह के नेता के रूप में चुने गए। सत्तारूढ़ भाजपा का यह आश्चर्यजनक कदम लोकसभा चुनाव होने से कुछ हफ्ते पहले आया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2024 में होने हैं। भाजपा ने अक्टूबर में ओम प्रकाश धनखड़ की जगह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले सैनी को हरियाणा का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अक्टूबर में राज्य भाजपा प्रमुख के रूप में सैनी की नियुक्ति को ओबीसी समुदाय और गैर-जाटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के पार्टी के कदम के रूप में देखा गया था।

हरियाणा विधानसभा चुनाव की वजह से बदला सीएम

हालांकि नायब सैनी को मुख्यमंत्री के रूप में चुनने के कदम को खट्टर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को दबाने के रूप में भी देखा जा रहा है। क्योंकि हरियाणा में सैनी समुदाय की आबादी करीब आठ फीसदी है।, यह समुदाय हरियाणा के कई उत्तरी जिलों के अलावा अंबाला, कुरूक्षेत्र और हिसार सहित कुछ अन्य जिलों में भी प्रभाव रखता है। लेकिन ओबीसी सीएम बनाने का असर यूपी, बिहार में देखा जाएगा। मध्य प्रदेश में जिस तरह मोहन यादव को सीएम बनाकर यूपी-बिहार में संकेत भेजा गया ठीक वही ,,नायब सैनी के मामले में भी है।

हरियाणा में तो लोकसभा की कुल 10 सीटें हैं लेकिन असली लड़ाई तो यूपी-बिहार में है जहां ओबीसी निर्णायक हैं। दोनों ही राज्यों में इंडिया गठबंधन के पास अखिलेश और तेजस्वी जैसे, मजबूत ओबीसी नेता है। इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ओबीसी और जाति जनगणना का मुद्दा छेड़ा हुआ है। इन सब वजहों ने भी नायब सैनी का रास्ता साफ किया।

राज्य में सबसे अधिक आबादी वाले समुदाय जाटों का समर्थन काफी हद तक कांग्रेस जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के बीच बंटा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में जेजेपी अलग लड़ेगी तो इसमें भाजपा को फायदा दिख रहा है क्योंकि जाट वोट बंटने पर भाजपा को फायदा होगा। महिला पहलवानों और किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा के जाट इस समय कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसा जाट चेहरा भी है।

पिछले तीन दशकों के दौरान सैनी राज्य भाजपा में बड़े पैमाने पर उभरे और उन्होंने राज्य भाजपा किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष और महासचिव का पद भी संभाला। वह 2002 में अंबाला के लिए राज्य भाजपा की युवा शाखा के जिला महासचिव थे और तीन साल बाद जिला अध्यक्ष बने। वह 2014 में नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने जब भाजपा अपने बल पर पहली बार हरियाणा में सत्ता में आई। 2019 के लोकसभा चुनावों में सैनी ने कुरुक्षेत्र सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के निर्मल सिंह को 3,84,591 मतों के अंतर से हराया था। सैनी, जो खट्टर कैबिनेट में मंत्री थे को मौजूदा सांसद आरके सैनी के विद्रोह के बाद 2019 में कुरुक्षेत्र सीट से मैदान में उतारा गया था।

साढ़े नौ साल की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी इसे काटने के लिए नेतृत्व को बदला गया राज्य में अफसरशाही हावी थी। मंत्री नाराज थे मगर मनोहर लाल लगाम कसने में नाकाम रहे। राज्य में पिछड़े वर्ग को साधने के लिए बदला गया भाजपा का बड़ा राजनीतिक मकसद यह है कि वह चुनाव को पूरी तरह से जाट बनाम गैर जाट बनाना चाहती है। मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने जब यह राजनीति शुरू की थी तब से 10 साल में बहुत सी चीजें बदल गईं। अब जाट राजनीति पूरी तरह से कांग्रेस के ईर्द गिर्द घूम रही है।

पिछले विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला ने ही उनकी जीत का रथ रोका था अन्यथा पिछली बार ही कांग्रेस बहुमत हासिल कर लेती। अगर दुष्यंत चौटाला भाजपा के साथ रहते तो उन पर भी जाट समुदाय के साथ धोखा करने का आरोप लगता रहता और भाजपा के साथ साथ उनको भी जाट वोट नहीं मिलता। लेकिन अलग होने के बाद वे भाजपा को अटैक करके कुछ वोट हासिल कर सकते हैं। भाजपा का मकसद त्रिकोणात्मक मुकाबला बनाना था।

जाट और गैर जाट के जरिए बीजेपी की चाल!

खट्टर को बदलने का फैसला भी राजनीतिक है क्योंकि वे इकलौते मुख्यमंत्री हैं जिनको नरेंद्र मोदी के राज में किसी प्रदेश में 10 साल के राज का मौका मिला है। बहरहाल, 10 साल के राज की एंटी इन्कंबैंसी लोकसभा नतीजों पर न पड़े इसलिए खट्टर को हटाना ही था। पहले ही खुद खट्टर ने कहना शुरू कर दिया था कि वे दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में ऐसा कई राज्यों में देखने को मिला है कि बीजेपी नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव से पहले सीएम को बदलकर किसी नए चेहरे को जगह दी हो। इसके बाद हुए चुनाव में पार्टी को फायदा भी मिला बीजेपी ने गुजरात में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव में बड़ी जीत हासिल की. त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदला और चुनाव जीतकर आई. उत्तराखंड में तो दो-दो सीएम बदले गए जीत बीजेपी की हुई. हालांकि, कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदला लेकिन बीजेपी की जीत नहीं मिली. अब हरियाणा में मुख्यमंत्री बदल दिया है. ऐसे में आगे क्या होगा? क्या बीजेपी अपने पुराने रिकॉर्ड को दोहरा पाएगी? आपको क्या लगता है ,अपनी राय कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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