Parliament special session 2023 : आज का पहला सवाल, संसद का विशेष सत्र , जो सरकार ने बुलाया है,, वह सिर्फ अपने गुणगान के लिए बुलाया है , या 75 वर्षों की संसद की यात्रा को दर्शाने के लिए , या उसे डर लगने लगा है,, कि 2024 में कहीं खुद सरकार ही ना निपट जाये,, तो उससे पहले का , तानाबाना बुनने के लिए बुलाया है , लेकिन क्यों लगने लगा है,, कि मोदी सरकार , चुनाव आयोग को भी,, अपने हाथों की कठपुतली बनाने की दिशा में बढ़ चली है?, मोदी सरकार , अपनी बहुमत के ताकत से,, संवैधानिक फैसले,, जो सुप्रीम कोर्ट लेती है,, उससे भी बदलने की राह पर निकल पड़ीं,, क्या चुनाव आयोग को गोदी आयोग बनाने की कोशिश में है मोदी सरकार?, मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकार छीने जा रही है,, सरकार ऐसा कौन सा कानून सरकार लेकर आ रही है,, जिससे लोकतंत्र की नींव पूरी तरह से हिल जाएगी?
क्या चुनाव आयोग को गोदी आयोग बनाने की कोशिश में है मोदी सरकार?
दोस्तों 2024 चुनाव से पहले,, मोदी जी विशेष सत्र बुलाकर जो खेल खेलना चाह रही है,, उसके ऊपर से अब पर्दा पूरी तरह से हट गया है,, दरअसल, सरकार इस विशेष सत्र में,, एक ऐसा कानून लेकर आ रही है,, जिससे लोकतंत्र की मजबूती पर पूरी तरह से चोट पहुंचेगी,, सरकार 2024 चुनाव से पहले,, पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है,, असल मे, मोदी सरकार , चुनाव आयोग को , गोदी आयोग बनाने की कोशिश कर रही है,, जैसा मीडिया के साथ किया है , सरकार ने न्यायपालिका के मुँह पर,, जजों के मुँह पर ताला लगाने की कोशिश की थी,, कॉलेजियम को खत्म करने के जरिए,, लेकिन विफल रही,, ठीक उसी तरह से अब चुनाव आयोग पर सरकार कब्जा कर रही है
नए कानून से चुनाव आयुक्तों की शक्तियां कम हो जाएंगी
दोस्तों भारत मे निष्पक्ष चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी,, चुनाव आयोग की है,, और चुनाव आयोग , और चुनाव आयोग के सबसे बड़े अधिकारी होते है , मुख्य निर्वाचन आयुक्त (chief election commissioner bill 2023 in special session) और उसके बाद होते है निर्वाचन आयुक्त , भारत चुनावों में विश्व गुरू हैं,, क्योंकी भारत मे कही न कही , कोई न कोई चुनाव चलता ही रहता है , और पिछले 10 सालों में 108 देशों ने , अपने चुनाव आयुक्तों को हमारे यहां भेजा है , ताकि वे हमसे सीख ले सकें,, लेकिन आज से शुरू हो रहे , संसद के विशेष सत्र मे , मोदी सरकार , एक विधेयक लेकर आ रही है , और इस विधेयक का नाम है , मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस) विधेयक, 2023 , यह बिल 10 अगस्त 2023 को ,,केंद्र सरकार ने राज्यसभा में पेश किया था , ,,अब संसद के विशेष सत्र के दौरान,, इसे सदन में लाया जाएगा,, और अगर ये विधेयक पारित होकर कानून बनता है तो,, ये इससे पहले के कानून ,‘चुनाव आयोग अधिनियम 1991’ की जगह लेगा।, और अब इस विधेयक के ज़रिए,, चुनाव आयोग को नौकरशाही के बराबर किया जा रहा है,, ये बिल,, चुनाव आयोग के अधिकारों को कमज़ोर करेगा,, क्योंकी हमें , ये भी ध्यान रखना होगा कि नेताओं को नौकरशाही के जरिए,, अनुशासन में नहीं रखा जा सकता
विधेयक से मुख्य चुनाव आयुक्त का रुतबा घटेगा
इस विधेयक के मुताबिक ,,मुख्य चुनाव आयुक्त यानी CEC और अन्य चुनाव आयुक्तों (chief election commissioner bill 2023) यानी EC की नियुक्ति,, एक सिलेक्शन कमेटी के सुझाव पर राष्ट्रपति करेंगे।,,सिलेक्शन कमेटी में तीन लोग होंगे,,- प्रधानमंत्री,, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष ,,और एक कैबिनेट मंत्री ,,जिसे पीएम ही नामित करेंगे।, सिलेक्शन कमेटी को पांच लोगों के नाम ,,शॉर्ट लिस्ट करके एक सर्च कमेटी देगी।,,सर्च कमेटी का (election commission) नेतृत्व कैबिनेट सेक्रेटरी रैंक के अधिकारी करेंगे।, इसमें दो अन्य सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी भी होंगे।, नियुक्ति के दिन से अगले 6 साल तक या ,,65 साल की उम्र होने तक चुनाव आयुक्त अपने पद की जिम्मेदारी संभालेंगे,,। चुनाव आयुक्त के पद के लिए कोई भी व्यक्ति ,,सिर्फ एक बार नियुक्त हो सकेगा।,,चीफ इलेक्शन कमिश्नर और अन्य इलेक्शन कमिश्नर की सैलरी,, अलाउंस और दूसरी सुविधाएं ,,कैबिनेट सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी के बराबर होंगी।, आयुक्त किसी भी समय राष्ट्रपति ऑफिस को एक रिजाइन लेटर भेजकर,, अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।,,मुख्य चुनाव आयुक्त (chief election commissioner) यानी CEC को उनके पद से हटाने का जिक्र ,,आर्टिकल 324 के क्लॉज 5 में किया गया है।, CEC को उनके पद से,, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह ही महाभियोग के जरिए हटाना संभव होगा।
नए कानून से चुनाव आयुक्तों की शक्तियां कम हो जाएंगी
इतना ही नहीं , इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त,, और दो चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों को,, संशोधित करने का प्रस्ताव है,, इसके ज़रिए उनका पद कैबिनेट सचिव के बराबर हो जाएगा,, जबकि आज के समय मे , उनका पद सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है,, विधेयक पास होने पर चुनाव आयुक्तों के वेतन में कोई खास अंतर नहीं आएगा,, सुप्रीम कोर्ट के जज , और कैबिनेट सचिवों का मूल वेतन,, लगभग बराबर ही है , बात वेतन की नहीं है , बात है , कि चुनाव आयुक्तों को नौकरशाही में मिलाने से , उनके अधिकार कम हो जाएंगे,, कैबिनेट सचिव के बराबर होने का साफ मतलब है,, कि आपका कद राज्य मंत्री (Minister of State) से भी नीचे है,, ऐसे में चुनाव के दौरान,, किसी केंद्रीय मंत्री के उल्लंघन करने पर,, आयुक्त उन पर अनुशासनात्क कार्रवाई कैसे कर पाएंगे?, और इससे भी बड़ा सवाल ये है,, की फिलहाल चुनाव आयुक्त,, किसी सरकारी अधिकारी को , किसी काम से बुलाते हैं , तो उनके आदेश को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर माना जाता है,, लेकिन कैबिनेट सचिव के बराबर होने पर,, उनके आदेश को कैसे देखा जाएगा?, और सविधान के हिसाब से , चुनाव आयुक्त और जजों के समकक्ष होने की बात संविधान में है,,,और मुख्य चुनाव आयुक्त को , केवल महाभियोग के जरिए हटाया जा सकता है
क्या नया प्रस्ताव बिल सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लघंन है?
इस बिल को लेकर,, विपक्ष के साथ-साथ , कई संविधान विश्लेषक भी,, केंद्र की मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं , सवाल उठाना भी लाजमी है , क्योंकी , सबसे पहले तो , इस विधेयक के ज़रिए सबसे पहले,, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलटा जा रहा है,, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में,, सिलेक्शन कमिटी में ,,सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जगह दी थी,, और इस विधेयक से सबसे पहले उन्हे हट दिया जा रहा है , उसके बाद जो सिलेक्शन कमिटी है , उस कमेटी मे , शक्ति का संतुलन नहीं है,,,मतलब , विपक्ष के नेता,, मीटिंग शुरू होने से पहले ही,, अल्पमत में चले जाएंगे हैं , क्योंकी प्रधानमंत्री , और केंद्रीय मंत्री के सहमत होने पर,, विपक्ष के नेता की आपत्ति का , कोई सवाल ही नहीं रह जाएगा , और जब चयन प्रक्रिया एकतरफ़ा होगी,, तो इससे चुनाव आयोग की स्वायत्तता,, और निष्पक्षता भी प्रभावित होगी,, हमारा मानना है की , केंद्र सरकार को,, सिलेक्शन कमिटी की समीक्षा करनी चाहिए,, और इसे अधिक संतुलित बनाना चाहिए,, ताकि निर्णय,,,पूरी निष्पक्षता के साथ लिए जा सके , इस सिलेक्शन कमिटी में,, विपक्ष की भी मज़बूत उपस्थिति होनी चाहिए,, साथ ही सर्च कमिटी में,, क़ानूनी जानकारों को शामिल किया जाना चाहिए
फिलहाल देश में कोई कानून नहीं
मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर ,,फिलहाल देश में कोई कानून नहीं है। ,,नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंद्र सरकार के हाथ में है।, अब तक अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के मुताबिक ,,सचिव स्तर के मौजूदा या रिटायर हो चुके ,,अधिकारियों की एक सूची तैयार की जाती है।,,कई बार इस सूची में 40 नाम तक होते हैं।, इस सूची के आधार पर ,,तीनों नामों का एक पैनल तैयार किया जाता है।,,इन नामों पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति विचार करते हैं।, इसके बाद प्रधानमंत्री पैनल में शामिल अधिकारियों से ,,बात करके कोई एक नाम राष्ट्रपति के पास भेजते हैं।,,इन नाम के साथ प्रधानमंत्री नोट भी भेजते हैं।,,इसमें उस शख्स के चुनाव आयुक्त चुने जाने की वजह भी बताई जाती है।
मामला कोर्ट तक पहुँचा , तब , मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में,, इस समिति में प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता को ,,शामिल करने का सुझाव दिया था,,,सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था,, कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति,, सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए,, सुप्रीम कोर्ट ने नियुक्ति को लेकर एक क़ानून बनाने के लिए भी कहा था,, इस फ़ैसले के बाद मॉनसून सत्र में , जिसमे ना कोई किसी की मान रहा था ना सुन रहा था , 10 अगस्त 2023 को,, मोदी सरकार ने राज्यसभा में एक बिल भी पेश कर दिया,, जिसका नाम था,, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023,, इस विधेयक पर राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ,, विपक्ष ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया , कि वो चुनाव आयोग को अपनी कठपुतली बनाना चाहती है,, समिति में भारत के चीफ जस्टिस को शामिल नहीं किया जाएगा,, क्योंकी , सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को शामिल न करना ,,सरकार का विशेषाधिकार है।, हालांकि,, सरकार कैबिनेट मंत्री के बजाय ,,लोकसभा अध्यक्ष को शामिल करने पर विचार कर सकती थी।
क्या नए कानून के बाद CEC को कैबिनेट सचिव की तरह सरकार कभी भी हटा सकेगी?
लेकिन सवाल ये उठता है,, की हम इस तरह उनके पद की गरिमा को कम करके , क्या हसिल कर रहे हैं?, चुनाव आयुक्त के पद का जो ग्रेड है,, उसे कम किया जा रहा है,, उसकी नियुक्ति अब प्रधानमंत्री और,, उनके पीएमओ ऑफिस द्वारा किया जाएगा,, ये नियुक्ति ,,जो प्रधानमंत्री के अधीन होगी,, ऐसे में आप बताइए , कि कहाँ और कैसे हम लोकतंत्र को जीवित रखेंगे,, क्योंकि चौथा स्तम्भ तो , पहले से ही सरकार के आगे नतमस्तक है?, चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर अब तक सवाल उठता रहा है , और अब तो खुलेआम खुलेआम अधिकार जो है, हथियाने की कोशिश सरकार कर रही है,, कहीं ना कहीं चुनाव आयोग को गोदी आयोग बनाने की कोशिश की जा रही है,, आखिरकार सरकार क्यों जुटी हुई है?, चुनाव आयुक्तों के अधिकार छीनने मे , चुनाव आयोग को कमजोर करने मे,, आपको क्या लगता है ,,क्या मुख्य चुनाव आयुक्त का रुतबा घटेगा,,,अपनी राय कमेन्ट कर जरूर बताएँ