Mahua Moitra Expelled: पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोपों से घिरी tmc सांसद महुआ मोइत्रा को संसद से निस्कासित कर दिया गया दोस्तों जो एथिक्स कमिटी संसद में गलीगलोच करने वाले Ramesh Bidhuri के मामले मे चुप्पी साध कर बैठी हुई थी सारे एथिक्स भूल गई थी उस एथिक्स कमिटी ने हीं चुटकियों में महुआ मोइत्रा की सदस्यता छिन ली है अब सारे एथिक्स एक दम से याद आ गए अब सवाल ये है महुआ के पास आगे क्या विकल्प हैं कैश फॉर क्वैरी मामला क्या है और एथिक्स कमेटी की जांच में ऐसा क्या निकला की उनकी सदस्यता ही चली गई
दोस्तों समिति की रिपोर्ट लोकसभा में पारित हो गई और ‘पैसे लेकर सदन में सवाल पूछने’ के मामले में फैसला (Mahua Moitra) महुआ के खिलाफ गया। गौरतलब है कि भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने तृणमूल कांग्रेस से सांसद महुआ मोइत्रा पर यह आरोप लगाया था कि उन्होंने भारतीय कारोबारी गौतम अदाणी और उनकी कंपनियों के समूह को निशाना बनाने के लिए संसद में लगातार सवाल पूछे मगर इसके लिए उन्हें रिश्वत मिली।
महुआ को बोलने का मौका मिले- TMC
इसके अलावा उन पर लोकसभा पोर्टल का ‘लाग-इन’ भी किसी अन्य के साथ साझा करने का आरोप है। महुआ मोइत्रा को संसद में अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया गया। जाहिर है, अब इस पहलू पर भी बहस होगी कि सदस्यता रद्द करने जैसे सबसे सख्त फैसले के बजाय क्या इस मामले में कोई और विकल्प या बीच का रास्ता नहीं बचा था?
दरअसल, ‘पैसे लेकर सदन में मुद्दा उठाने’ को लेकर अक्सर गंभीर सवाल उठते रहे हैं। इस तरह के आरोप के कारण किसी सांसद को सदन से निष्कासित करने के मामले पहले भी आए हैं। मगर जहां तक महुआ मोइत्रा का सवाल है तो इस मामले में अपने ऊपर लगे आरोपों को उन्होंने निराधार बताया और कहा कि उनके नगद या तोहफे लेने का सबूत कहीं नहीं है और वे हर तरह की जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं।
लोकसभा का पोर्टल किसी अन्य व्यक्ति से साझा करने को लेकर उनका मानना है कि इस बारे में कोई स्पष्ट नियम नहीं है। ऐसे में यह देखने की बात होगी कि इस मामले में आचार समिति के निष्कर्ष के क्या आधार हैं। फिर भी अगर इस आरोप के पुख्ता सबूत हैं, तो ‘लाग-इन’ किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझा करना क्या नैतिक और तकनीकी दृष्टि से उचित है और क्या यह अपने दायित्वों की सीमा की अनदेखी नहीं है? जहां तक आचार समिति के पास निष्कासित करने और प्रक्रिया के दुरुपयोग का मसला है तो इस पर संसद में बहस हो सकती थी जहां इस बारे में कोई स्पष्ट तस्वीर उभरती।
संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने और वेबसाइट का ‘लाग-इन’ साझा करने के आरोप प्रकृति में अलग और गंभीर हैं, मगर सबूतों के आधार पर कार्रवाई की सिफारिश के समांतर महुआ मोइत्रा को पक्ष रखने का मौका देने की उम्मीद की जा रही थी। संसद लोकतंत्र का प्रतिनिधि हिस्सा है और इसमें सवालों पर बहस किसी खास मुद्दे पर सभी पक्षों की पारदर्शिता और जनता के सामने स्पष्टता सुनिश्चित करने का जरिया है।
रिपोर्ट मे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 43, धारा 66 का हवाला देते हुए कहा गया कि गलत तरीके से सांसदों के पोर्टल की आईडी और पासवर्ड साझा करने पर तीन साल की कैद और 5 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है। महुआ ने जो किया वह कानूनी तौर पर काफी गंभीर है, इसलिए उनकी सदस्यता रद्द की जाए।
संसद में दोबारा लौटने के लिए क्या बचे हुए हैं ऑप्शन?
दोस्तों सदस्यता वापस पाने के लिए महुआ मोइत्रा के पास कुल मिलाकर पांच विकल्प बचे हुए हैं. लेकिन अभी ये साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है अगर वह इन विकल्पों का इस्तेमाल करेंगी तो उन्हें राहत मिल ही जाएगी. टीएमसी नेता के पास पहला ऑप्शन है वह फैसले की समीक्षा के लिए संसद से गुजारिश करें. हालांकि, आखिरी फैसला सांसद का ही होगा कि वह इस पर विचार करना चाहता है या नहीं.
महुआ मोइत्रा के पास दूसरा ऑप्शन वह मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट जाएं. वह इस मामले में केस करें और फिर अदालती फैसले की उम्मीद करें. महुआ के पास तीसरा ऑप्शन है वह संसद के निर्णय को स्वीकार करें और आगे बढ़ जाएं. लगभग चार महीने बाद एक बार फिर से चुनाव होने वाले हैं. वह चुनाव लड़ें और उसे जीतकर फिर से संसद में पहुंच जाएं.
टीएमसी नेता अगर चाहें तो चौथे ऑप्शन के तौर पर एथिक्स कमेटी के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दे सकती हैं. वह इस बात का तर्क दे सकती हैं कि एथिक्स कमेटी ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर उनके खिलाफ फैसला दिया. वह ये भी कह सकती हैं कि इस मामले को विशेषाधिकार समिति को देखना चाहिए. महुआ मोइत्रा पांचवें ऑप्शन के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मुकदमे के जरिए राहत मांग सकती हैं. इसके लिए उन्हें अदालत में साबित करना होगा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से उनकी छवि खराब हुई है. इसके जरिए वह एथिक्स कमेटी के फैसला बदलने की उम्मीद कर सकती हैं.
दोस्तों सब के सब अपनी जगह सही हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कोई सांसद जिसे लोगों की समस्याओं से जुड़े प्रश्न पूछने और कुछ हद तक उनका निराकरण करवाने के लिए जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है, वे पैसे लेकर प्रश्न पूछने का किसी को ठेका कैसे दे सकते हैं? आपको याद होगा कि वर्षों पहले एक टीवी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में भी कुछ सांसद पकड़े गए थे जो पैसे लेकर प्रश्न पूछने के लिए तैयार हो गए थे। आख़िर यह परम्परा कैसे पड़ी? इस पर रोक के उपाय क्या हैं?
महुआ मोइत्रा को लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित करना इस समस्या का समाधान नहीं है बल्कि प्रश्न पूछे जाने की प्रक्रिया को फूल प्रूफ़ बनाने से समस्या का समाधान होगा। इस दिशा में लोकसभा सचिवालय क्या कर रहा है यह जनता को बताना चाहिए। अगर महुआ मोइत्रा ही सही हैं और पूरा विपक्ष उनके सही होने से पूरी तरह सहमत हैं तो सामूहिक इस्तीफ़ा देकर इस पूरी प्रक्रिया का बहिष्कार क्यों नहीं कर दिया? आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है कमेन्ट कर जरूर बताएँ