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Tax concessions for political donations : राजनीतिक चंदे पर Tax छूट या लूट!

Tax concessions for political donations : नेताओं को चंदा धंधेबाजों का धंधा और जनता यानी सरकार के खजाने को चपत।  केंद्र सरकार को 2022-23 में राजनीतिक दलों को चंदे की रकम पर 4 करोड़ रुपए से हाथ धोना पड़ा।जब सरकार को आम आदमी की पाई-पाई का हिसाब चाहिए । तो राजनीतिक दलों को ऐसे दान पर छूट क्यों ? केंद्रीय बजट 2024-25 में वित्त मंत्रालय द्वारा किए गए अनुमान के अनुसार राजनीतिक दलों को दान के कारण कॉर्पोरेट्स फर्मों और व्यक्तियों द्वारा प्राप्त टैक्स कटौती का राजस्व प्रभाव वित्त वर्ष 2022-23 में अनुमानित 3967.54 करोड़ रुपये था।यानि सरल शब्दों मे कहे तो लोगों कॉरपोरेट्स फर्मों आदि ने राजनीतिक दलों को चंदा देकर 2022-23 में 3967.54 करोड़ का टैक्स बचाया। लेकिन सरकार के खजाने को इससे तो नुकसान हुआ। साफ है आम जनता टैक्स भरती है और राजनीतिक दल चंदा वसूल कर बड़े लोगों को टैक्स बचवाते हैं।आयकर में छूट का यह नियम भले ही सरकार ने बनाया हो लेकिन हकीकत में इससे जनता के खजाने को ही चपत लगी है। इस रकम से अनेक विकास कार्य करवाए जा सकते हैं।

2021-22 की तुलना में 13% अधिक

दोस्तों पिछले केंद्रीय बजट (Union budget 2024-25) विश्लेषण के अनुसार यह आंकड़ा 2021-22 की तुलना में 13% अधिक है और चुनावी फंडिंग में और बढ़ोतरी को दर्शाता है जिसमें पिछले नौ वर्षों के दौरान तेजी से बढ़ोतरी देखी जा रही है। यानी जब से भाजपा केंद्र की सत्ता में आई है राजनीतिक चंदा बढ़ा है और उससे सरकार के खजाने को राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 के आंकड़े अभी सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. जो आंकड़े आए हैं वो साल 2014-15 से लेकर साल 2022-23 तक के हैं.आप इस लिस्ट में देख सकते है किस वर्ष में कितना सरकारी खजाने पर असर पड़ा है

2021-22 में (political donations) राजनीतिक चंदे के लिए (Tax concessions) टैक्स रियायतें 3516.47 करोड़ रुपये थीं जो पिछले वित्त वर्ष से 300% अधिक है। 2014-15 में यह 170.86 करोड़ रुपये थी उस समय मोदी सरकार को आए हुए एक साल ही था।कुल मिलाकर 2014-15 के बाद से नौ वर्षों में राजनीतिक डोनेशन पर प्राप्त टैक्स रियायतों का कुल राजस्व प्रभाव अनुमानित 12270.19 करोड़ रुपये है।  अगर राजनीतिक दलों (Budget 2024 analysis) को चंदे पर छूट नहीं मिली होती तो सरकार को अपने खजाने में 12270.19 करोड़ रुपये मिले होते। एक तरफ  आम जनता जीएसटी के अलावा तमाम और भी टैक्स भरती है। वेतनभोगी आयकर से अपनी आमदनी छिपा ही नहीं पाते और उन्हें टैक्स देना होता है।आयकर अधिनियम 1961 के तहत भारतीय कंपनियों फर्मों व्यक्तियों उनके संगठनों उनकी कंपनियों हिंदू अविभाजित परिवारों (HUF) सहित तमाम करदाताओं को राजनीतिक चंदा देने पर टैक्स छूट का दावा करने की अनुमति है। राजनीतिक दलों को यह चंदा चेक खाते में सीधे ट्रांसफर  या चुनावी बांड के माध्यम से दिया गया है।

चंदे के बदले दिया धंदा

2022-23 में 3967.54 करोड़ रुपये के अनुमानित राजस्व में से सबसे अधिक – 2003.43 करोड़ रुपये का लाभ धारा 80GGB के तहत कॉर्पोरेट करदाताओं ने प्राप्त किया था।  आयकर अधिनियम की धारा 80GGB में कहा गया है कि “एक भारतीय कंपनी होने के नाते कुल आय की गणना करने में पिछले वर्ष में किसी भी राजनीतिक दल या चुनावी ट्रस्ट को योगदान की गई किसी भी राशि में कटौती की जाएगी। लेकिन अगर पैसा कैश में दिया गया हो तो किसी तरह की कटौती की अनुमति नहीं है। यह नियम आम लोगों पर भी लागू है यानी अगर वे किसी पार्टी को कैश में चंदा देते हैं तो टैक्स छूट का लाभ नहीं ले सकते।धारा 80जीजीबी और 80जीजीसी के प्रयोजन के लिए अधिनियम “राजनीतिक दल” शब्द को “जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत एक राजनीतिक दल” के रूप में परिभाषित करता है।धारा 80जीजीसी के तहत राजनीतिक दान के लिए व्यक्तियों द्वारा दावा की गई टैक्स रियायतें 1862.38 करोड़ रुपये थीं और गैर-कॉर्पोरेट करदाताओं (फर्म/एओपी/बीओआई) द्वारा 101.73 करोड़ रुपये थीं।

इलेक्ट्रोरल बॉन्ड का मामला जब सामने आया था तो पता चला था कि राजनीतिक चंदे का सबसे ज्यादा लाभ भाजपा ने उठाया है। बाकी राजनीतिक दलों को वो लाभ ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को बंगाल की क्षेत्रीय पार्टी टीएमसी से कम चंदा मिला था। कांग्रेस पार्टी कई दशक तक केंद्र की सत्ता में रहीं लेकिन उसे कभी राजनीतिक चंदा इतना नहीं मिला जितना भाजपा ने पिछले एक दशक में हासिल किया है।चुनावी बांड का मामला सामने आने के बाद राजनीतिक दलों में जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगे थे। देश में सीपीएम एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने किसी भी तरह का चुनावी बांड लेने या उसके बदले चंदा लेने से इनकार कर दिया। लेकिन सीपीएम के अलावा बाकी दलों ने इसका लाभ उठाया है। लाभ का एक बड़ा हिस्सा भाजपा तक सीमित रहा। भाजपा को दान देने वाली कंपनियों में ऐसी भी शामिल थीं जो ईडी और आयकर जांच या छापे का सामना कर रही थीं। विपक्ष ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने चंदे की रकम पाने के बाद उस कंपनी की ईडी या इनकम टैक्स जांच बंद कर दी। इन तमाम मामलों में अडानी समूह या अंबानी ग्रुप से जुड़ा कोई मामला सामने नहीं आया। बहरहाल राजनीतिक चंदे के हमाम में करीब करीब सभी दल शामिल हैं। कोई दूध का धुला नहीं है। आयकर में छूट का यह नियम भले ही सरकार ने बनाया हो लेकिन हकीकत में इससे जनता के खजाने को ही चपत लगी है। खैर आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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