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Lok Sabha Election 2024: दलबदल की राजनीति किसी का दबाव या कुर्सी की लालसा?

Lok Sabha Election 2024: दोस्तों काँग्रेस मुक्त भारत बनाते बनाते बीजेपी कांग्रेसयुक्त बन गई है बीजेपी अब नई काँग्रेस बन चुकी है ‘भारतीय जनता पार्टी अब भारतीय कांग्रेस पार्टी हो चली है। अब पार्टी का नाम मोदी-शाह कांग्रेस पार्टी।’ कर देना चाहिए सबसे बड़ा सवाल है क्यों विपक्ष टूट कर बीजेपी में शामिल हो रहा है टूट रहा है, या तोड़ा जा रहा है दोस्तों बीजेपी दलबदल कराने का एक ऐसा रिकार्ड बना लेना चाहती है, जो नजीर बन जाये। दल बदल की राजनीति दल दल की सरकार बस सब नेताओं के ख़्वाब में कुर्सी और कार किसी का दबाव है या कुर्सी की लालसा… जिसे कुर्सी की लालसा है जो पावर-हंगरी है वह जनता का क्या सुधारेंगे? जब बीजेपी के पास नरेन्द्र मोदी जैसा लोकप्रिय नेता है और भाजपा और संघ का मज़बूत संगठन है तो ऐसे समझौते करने की क्या ज़रूरत है? क्या जो 400 पार का नारा दिया है सिर्फ उसे पूरा करने के लिए विपक्ष को तोड़ा जा रहा है

दोस्तों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अबकि बार 400 पार का नारा दिया है। भाजपा अपने दम पर 370 अथवा उसके पार का रणभेरी भी मोदी ने बजा रखी है।, पीएम ने भाजपा कार्यकर्ताओं को यह भी लक्ष्य दिया हुआ है कि हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाना है। भाजपा दलबदल का बड़ा रिकार्ड बनाने का ताना-बाना बुन चुकी है। सूत्रों के हवाले से कल भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल को एक लाख या उसके पार कांग्रेसियों को बीजेपी ज्वाइन कराई जाएगी

जिस प्रधानमंत्री के नेतृत्व में दूसरे दलों के भ्रष्टाचार के आरोपी,, बीजेपी में जमा हो रहे हैं उनका हर रैली में कहना कि वे भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं, इससे बड़ा झूठ क्या हो सकता है। बात केवल प्रफुल्ल पटेल की नहीं है बात उनकी भी है जो ईडी सीबीआई के केस के बाद भागे भागे बीजेपी में आ गए ऐसे लोग पीएम के बयान पर कितना हंसते होंगे। क्या रैली में सामने बैठी जनता को पता है कि मंच से प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार मिटाने की नहीं भ्रष्टाचारियों को अपनी पार्टी में मिलाने की बात कर रहे हैं।

जो दागी हैं और जिनके ख़िलाफ़ भाजपा खुद शोर मचाती रही उन्हे पार्टी मे शामिल किया जा रहा है विपक्ष कहता है भाजपा ‘वाशिंग मशीन’ है जिसमें दाखिल होकर सब गंदे साफ़ हो जाएगे। प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ गम्भीर मामले ख़त्म कर सीबीआई ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।, जिन लोगों के कारण कांग्रेस बदनाम हुई है उन्हें शामिल कर भाजपा की छवि प्रभावित हो रही है। अब कांग्रेस पर भ्रष्ट होने की तोहमत कैसे लगेगी? परिवारवाद की प्रधानमंत्री बहुत आलोचना करते हैं पर महाराजा पटियाला का सारा शाही परिवार ही भाजपा ने शामिल कर लिया। परनीत कौर पटियाला से चुनाव लड़ रही हैं। ऐसे और भी बहुत से उदाहरण है।

किसी का दबाव या कुर्सी की लालसा?

पहले समय में तो बहुत कम लोग दलबदल करते थे पर आजकल की हमारी राजनीति तो बहुत पहले लोकसेवा नहीं रही थी वैसे भी जो रातोंरात बदल रहे हैं वह जनता की सेवा क्या करेंगे? कांग्रेस में और फिर आप में रहते हुए जो नरेन्द्र मोदी और भाजपा की आलोचना करते रहे आज उन्हें उन्हीं के नाम पर वोट मांगते ज़रा भी अटपटा नहीं लगा? साल 2019 में साउथ दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले विजेंदर सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं।

जब से केंद्र में मोदी सरकार बनी है विपक्ष लगातार खत्म होता जा रहा है और बीजेपी लगातार मजबूत हो रही है. पीएम मोदी के सामने विपक्ष दल कमजोर पर कमजोर हो रहे हैं. हाल ही में विपक्षी दलों के 80 हजार से अधिक कार्यकर्ता और नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं. और इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनावों की घोषणा होने के बाद से कांग्रेस समेत तमाम दलों के दिग्गज नेता बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. जिसे देखो वही केसरिया ओढ़े चला आ रहा है.

इसके कुछ उदाहरण तो थोड़े दिन पहले ही सामने आए हैं. 24 मार्च को पूर्व वायुसेना चीफ आरकेएस भदौरिया और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के नेता वरप्रसाद राव वेल्लापल्ली भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. कर्नाटक से जनार्दन रेड्डी बीजेपी में तो शामिल हुए ही साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (केआरपीपी) का भी बीजेपी में विलय कर दिया. छत्तीसगढ़ में जगदलपुर नगर निगम की कांग्रेसी महापौर सफीरा साहू समेत आठ कांग्रेसी पार्षदों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. बस्तर लोकसभा से कुल 2300 कार्यकर्ताओं ने बीजेपी ज्वॉइन की है. बीजेपी में शामिल होने वाले बड़े नेताओं की बात करें तो इनमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण बसपा सांसद रितेश पांडेय बीएसपी सांसद संगीता आजाद, लालचंद कटारिया, अर्जुन सिंह किरण कुमार रेड्डी, ज्योति मिर्धा, अर्जुन मोढवाडिया आदि शामिल हैं.

आमतौर पर जब भी कोई कांग्रेस का नेता भाजपा में जुड़ता है तो आरोप लगते हैं कि साम, दाम, दंड, भेद से उन्हें दबाया गया लेकिन जब अर्जुन मोढवाडिया जैसे नेता भाजपा में शामिल होते हैं जिन्हें कांग्रेस ने सब कुछ दिया हो तब यह सवाल उठता है कि ऐसी कौन सी वजह है कि नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग होता है? सच्चाई यह है कि जिन नेताओं ने 30-40 साल कांग्रेस में बिताए उनको लगता है कि अभी कांग्रेस सत्ता में आने की स्थिति में नहीं है. वैसे में सत्ता में आने के लिए भाजपा ही एकमात्र विकल्प है. इसलिए वह भाजपा मे जुड़ते हैं. हम ऐसे नहीं कह रहे हैं क्योंकि अगर वर्तमान गुजरात सरकार के मंत्रिमंडल पर नजर डालें तो सरकार के 9 में से तीन कैबिनेट मंत्री ,,बलवंतसिंह राजपूत, कुंवरजी बावलिया, राघवजी पटेल कांग्रेस छोड़कर भाजपा मे आए थे.

जनता और भाजपा के अपने कैडर दोनों को यह दलबदल बिल्कुल रास नहीं आ रहा। पार्टी के अंदर विरोध की जो आग भड़क रही है हो सकता है चुनाव तक कुछ ठंडी हो जाए पर जिस तरह भाजपा कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से लोगों को शामिल कर रही है उससे बहुत गलत संदेश जा रहा है। जो वर्षों से पार्टी के लिए संघर्ष करते रहे दरियां बिछाते रहे और दीवारों पर पोस्टर चिपकाते रहे वह अवाक हैं कि उनकी जगह उनको टिकट मिल रहे हैं जो गला फाड़-फाड़ कर नरेन्द्र मोदी और भाजपा की आलोचना करते रहे।

दलबदल के दलदल में राजनीति

वैसे तो हर पार्टी छापा मारने की कोशिश कर रही है पर भाजपा तो बहुत तेज है। साधन भी हैं पंजाब में कांग्रेस और आप से आयात किए गए तीन लोगों को टिकट दिए गए हैं। इनमें रवनीत बिट्टू भी शामिल हैं जिनके दादा सरदार बेअंत सिंह ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहते शहादत दी थी पंजाब में भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ही पुराने कांग्रेसी हैं। पंजाब से भी अजीब हालत हरियाणा की है जहां जिन्हें भाजपा की टिकट दी गई 10 में से 6 वह हैं जिनकी कांग्रेस की पृष्ठभूमि है। केवल चार शुद्ध भाजपाई हैं। अशोक तंवर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आप का चक्कर काट कर भाजपा में आए हैं। तेलंगाना में भाजपा के 17 में से 9 उम्मीदवार बीआरएस से हैं जिसे वह अत्यंत भ्रष्ट पार्टी कहते रहे हैं और जिसके पूर्व मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव की बेटी कविता को शराब घोटाले में गिरफ्तार किया गया है।

दोस्तों वैसे तो हर पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वी को तोड़ने की कोशिश करती है पर जिस तरह चुनाव से पहले दो मुख्यमंत्रियों, हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया और कांग्रेस का खाता फ्रीज हो गया उससे देश में बेचैनी है और विदेश में आलोचना हो रही है। अब आयकर विभाग ने कह दिया कि जुलाई तक वह कांग्रेस पार्टी से 3500 करोड़ रुपया वसूल नहीं करेंगे पर ‘टैक्स के राजनीतिककरण’ का मुद्दा तो देश के अंदर और बाहर चर्चा बन गया है।

क्या केजरीवाल को इस समय इसलिए गिरफ्तार किया गया है ,,कि वह चुनाव में हिस्सा न ले सके? और यह प्रभाव भी नहीं मिलना चाहिए कि एक उभर रही विपक्षी पार्टी को सरकारी एजेंसियों की मार्फ़त निष्क्रिय करने की कोशिश हो रही है। विदेशों में हमारे लोकतंत्र की छवि पहले वाली नहीं रही। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की संस्थाओं पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? हम खुद को विदेशी आलोचना के लिए खुला क्यों छोड़ रहे हैं?

दलबदल इस बार के चुनाव में यह इतना आम हो गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी इसे लेकर तंज किया। उन्होंने नेताओं को नसीहत दी कि वे चुनाव प्रचार में सोच समझ कर एक दूसरे पर हमला करें और उचित भाषा का इस्तेमाल करें क्योंकि क्या पता आगे किसको किसके साथ काम करना पड़े। सुप्रीम कोर्ट ने भी महाराष्ट्र की दो पार्टियों के विभाजन के मामले में इस पर सुनवाई की है।

दोस्तों विधायक और सांसद तो आते जाते रहते हैं। जैसे इन दिनों आवाजाही लगी हुई है। इतनी भारी संख्या में दलबदल हुई है कि मतदाता भी कंफ्यूज होंगे कि चेहरा किसका है और चुनाव चिन्ह कौन सा है। जिनको मतदाता दशकों से पंजा छाप पर चुनाव लड़ते देख रहे थे वे कमल का फूल लेकर घूम रहे हैं। कहीं लालटेन निशान वाले कमल के फूल छाप पर लड़ रहे हैं तो कहीं तीर वालों ने लालटेन थाम लिया है। कहीं तीर धनुष वाले कमल के निशान पर चुनाव लड़ रहे हैं तो कहीं कमल वाले पंजा छाप पर लड़ रहे हैं।

पूरे देश में दलबदल का ऐसा दलदल बना है कि विचारधारा और पार्टी के सिद्धांत ,,आदि चीजें पूरी तरह से समाप्त हो गई हैं। देश में जिस तरह से सत्ता के लिए अंधी होड़ शुरू हुई है उसे देख कर नहीं लगता है कि कानूनी तरीके से इसे रोका जा सकता है।, जिस समय देश में दलबदल रोकने वाला कानून नहीं था ,,उस समय दलबदल बहुत कम था। पार्टियां टूटती थीं तो समान विचारधारा वाली दूसरी पार्टी बन जाती थी।

लेकिन जब से दलबदल रोकने का कानून बना है तब से यह राजनीतिक शिष्टाचार बन गया है। नेताओं के लिए विचारधारा का कोई मतलब नहीं रह गया है और न लोकलाज का कोई मतलब रह गया है।, वे कल तक जिस नेता और पार्टी का विरोध करते थे और सार्वजनिक रूप से गालियां देते थे आज उसी पार्टी के नेता की तारीफ के पुल बांधने में उनको दिक्कत नहीं हो रही है। जरा सोचिए, मौजूदा डिजिटल दौर में जब हर व्यक्ति की कही बातें वीडियो और ऑडियो के रूप में उपलब्ध हैं तब भी नेताओं को अपनी बात से पलटने में मिनट भर का समय नहीं लग रहा है। उसे दिखाया जाता है कि कुछ समय पहले वे जिस नेता को गाली दे रहे थे आज उसके चरण छू रहे हैं तो वह बेशर्मी के साथ या तो इसका बचाव करता है या टाल जाता है।

यह फालतू की बात है कि सख्त कानून बना देने से यह रूक जाएगा। या यह कानून बन जाए कि एक पार्टी की टिकट से चुनाव जीतने वाला अगर पार्टी छोड़े तो उसे अनिवार्य रूप से इस्तीफा देना पड़ेगा या उसके चुनाव लड़ने पर रोक लग जाए तो दलबदल रूक जाएगा। कितना भी सख्त कानून बना लिया जाए इसे नहीं रोका जा सकता है। क्योंकि हर कानून के बीच से रास्ता निकाल लिया जाता है। दलबदल करा कर फायदा उठाने वाली पार्टी उनको टिकट देकर चुनाव लड़ाती है।

अगर उसके लड़ने पर रोक लग जाएगी तो उसके परिवार का कोई दूसरा सदस्य उसकी पत्नी या बेटा बेटी में से कोई चुनाव लड़ेगा। चूंकि भारत में राजनीति सत्ता हासिल करने का अलग ही नशा है सबपर यह असीमित शक्ति और बेहिसाब धन कमाने का जरिया बन गई है इसलिए इसे किसी तरह से नहीं रोका जा सकता है।

जब तक राजनीति से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होता है शुचिता बहाली नहीं होती है तब तक किसी कानून से दलबदल नहीं रूकने वाला है। नेता पूरी बेशर्मी के साथ उस पार्टी के साथ जाएंगे जिसकी सत्ता है या जिसके जीतने के अवसर हैं। यह एक राज्य या एक पार्टी का मामला नहीं है। तेलंगाना में सत्ता बदलते ही क चंद्रशेखर राव की पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल होने वालों की होड़ मची है। नेता को सत्ता चाहिए और पार्टियों को जिताऊ नेता चाहिए येही कारण है विपक्ष टूटकर बीजेपी में जा रहा है और बीजेपी विपक्ष को इसलिए ही तोड़ रही है खैर आपकी दलबदल पर क्या राय है

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