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No Confidence Motion: क्या अविश्वास प्रस्ताव से सत्ता पक्ष घिरेगा या बढ़ेंगी विपक्ष की राजनीतिक मुश्किलें?

No Confidence Motion: अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार के खिलाफ पेश हो चुका है,,,. ,,क्या इस प्रस्ताव की कोई जरूरत थी? क्या इससे केंद्र में मोदी सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा? खुद I.N.D.I.A के रूप में,, पुनर्गठित विपक्ष की सेहत ,,,,क्या अविश्वास प्रस्ताव से सुधरेगी? क्या सत्ताधारी गठबंधन में कोई मतभेद ये अविश्वास प्रस्ताव ला पाएगा? अगर इन सवालों के जवाब ना में हैं, तो बड़ा सवाल यह है कि कहीं अविश्वास प्रस्ताव खुद विपक्ष के लिए उल्टा तो नहीं पड़ने वाला है

देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे

ये सही है कि मोदी सरकार के खिलाफ लाया जा रहा ,,,,ये अविश्वास प्रस्ताव देश के इतिहास में 28वां है.,,, अविश्वास प्रस्ताव को सिर्फ तीन बार कामयाबी मिली है,,, और अक्सर अविश्वास प्रस्ताव तत्कालीन सरकारों पर ,,,,,कोई असर डाल नहीं पाया है.,,,, पूरा सच ये है कि अविश्वास प्रस्ताव ,,,,,,,,हमेशा देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं. ,,,,,अविश्वास प्रस्ताव के लिए ,,,जो मुद्दा कैटेलिस्ट का काम करता है,,,,,,, उस मुद्दे पर राजनीतिक लामबंदी होती है.,,, चाहे विपक्ष लामबंद हो ,,,,या फिर सत्ता पक्ष की लामबंदी टूटे-,,, दोनों ही स्थितियां अविश्वास प्रस्ताव की सफलता को दिखाती हैं.
अविश्वास प्रस्ताव का मकसद ,,,अगर प्रधानमंत्री की मणिपुर के मुद्दे पर चुप्पी है,,,,, तो इस बात की क्या गारंटी है,, कि ये चुप्पी संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तोड़ ही देंगे.,,, इसके पूरे आसार हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर के मुद्दे पर ,,,कोई जवाब ही ना दें,,,,,. वो मौन बनाए रखें

दिल्ली अध्यादेश पर विधेयक लाते हुए अपनाई

सत्ता पक्ष ने भी कमर कस ली है.,,, पहली रणनीति सत्ता पक्ष ने दिल्ली अध्यादेश पर विधेयक लाते हुए अपनाई है,,,. इस विषय पर सत्ता पक्ष का मकसद विपक्षी खेमे को भ्रमित करना है,,,. इस मुद्दे पर जगन मोहन रेड्डी को साथ लाकर ,,,बीजेपी ने पहले ही I.N.D.I.A को दबाव में ला दिया है.,,,,अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के लिए जहां सत्ता को घेरने का अवसर है.,, वहीं, सत्ता पक्ष के लिए भी ये बड़ा अवसर है ,,,,,,जब वो अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का रुख बदल दे ,,,,और उससे विपक्ष को ही घायल कर दिखाए.,,, पूरे 81 साल बाद 8 अगस्त की तारीख का ,,देश को इंतज़ार है। 8 अगस्त 2023 को देश की हंगामेदार संसद में,,, मौजूदा सरकार के खिलाफ अल्पमत वाले ,,विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होगी। ,,,,,,,,,, अविश्वास प्रस्ताव का अंजाम सब जानते हैं

संसद में जन प्रतिनिधियों को बोलने का समय मिलेगा

फिर भी ये अविश्वास प्रस्ताव इस मायने में महत्वपूर्ण है ,,,,,कि देश की संसद में जन प्रतिनिधियों को बोलने का समय मिलेगा। ,,,,,,,,,,किसी को एक मिनट, तो किसी को आधा घंटा।,,,, विपक्ष मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री के बयान की मांग को लेकर हंगामा करता रहा ,,,,और सत्ता पक्ष हंगामा कराता रहा,,,, सरकार के लिए बहस करती ,,,संसद तकलीफदेह होती है।


प्रधानमंत्री के बयान के लिए उतावले विपक्ष को 8 अगस्त का इंतज़ार हो सकता है किन्तु मुझे नहीं है। आम आदमी को भी शायद ही हो क्योंकि आम आदमी हर दिन प्रधानमंत्री को किसी न किसी मंच पर बोलते सुनता ही है।प्रधानमंत्री अपने मन की बात के अलावा सबके मन की बात कभी करते नहीं। संसद में भी वे अपने मन की बात ही करेंगे। सबको सुनना भी पड़ेगा। विपक्ष भले ही प्रधानमंत्री की बात को गामे में डूबोना चाहे लेकिन वो डूबने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री की आवाज तभी डूबेगी जब भाजपा का सूरज डूबे और भाजपा का सूरज अभी डूबने को राजी नहीं है।

प्रधानमंत्री का डंका पूरी दुनिया में बज रहा

हमारे प्रधानमंत्री का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। वे झूठ बोलते हैं या सच, ये पूरी दुनिया जानती है। उनके इतिहास, भूगोल, विज्ञान के ज्ञान से सभी अभिभूत हैं। वे जो बोलते हैं वो किसी किताब में आपको नहीं मिलेगा। उन्होंने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तरह ,,पोथियाँ नहीं लिखीं वे 24 में से 18 घंटे तो देश के लिए काम करते हैं। ऐसे में ‘भारत एक खोज’ जैसी कठिन किताब कहाँ से लिखें? हमारे प्रधानमंत्री किताबें नहीं लिखते इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है ,,,,कि वे पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री नहीं हैं। वे पढ़े भी हैं और लिखे भी हैं । आने वाली पीढ़ी उन्हें रूचि लेकर पढ़ेगी।


अविश्वास प्रस्तावों के मामले में अभी उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री की भी बराबरी नहीं की है। अभी पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गाँधी की बराबरी करना है। इंदिरा गांधी ने 15 अविश्वास प्रस्ताव झेले। मोदी के सामने तो ले-देकर ये दूसरा अविश्वास प्रस्ताव आया है.

अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सरकार को बेनकाब करने की कोशिश

अविश्वास प्रस्ताव के जरिये विपक्ष पीएम मोदी की सरकार को बेनकाब करने की कोशिश ही कर सकता है। इस अविश्वास प्रस्ताव से ,,सरकार की सेहत पर तो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। सरकार की सेहत पर फर्क पड़ेगा आगामी महीनों में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों से। इसीलिए प्रधानमंत्री संसद में आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर कम विधानसभा चुनावों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। प्रधानमंत्री दूर की सोचते है
विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव भले ही कितने आत्मविश्वास के साथ संसद में आ रहा हो लेकिन उसे औंधे मुंह गिरना पड़ेगा। हाँ, इस अविश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन से विपक्ष अपने नव गठित ‘इंडिया’ के सदस्यों की नफरी जरूर कर सकता है। पता चल जाएगा कि ‘इंडिया’ में कोई कमजोर कड़ी तो नहीं जुड़ गयी?
महाराष्ट्र इस मामले में हमेशा से suspected रहा है। महाराष्ट्र के एनसीपी नेता शरद पवार ने हाल ही में ‘इंडिया’ के विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री के सर पर लोकमान्य गंगाधर तिलक ब्रांड टोपी सुशोभित की है। उनकी पीठ पर हाथ फेरा है। ये दुर्लभ काम या तो अम्बानी परिवार के सदस्य कर पाते हैं या फिर शरद पवार ने ये कारनामा कर दिखाया है।

लोकतंत्र के लिए ये सभी कोशिशें आवश्यक

उमीद ये है अब की ना तो विपक्ष पीछे हटे और न पीएम मोदी झुकें।,, संसद के रिंग मास्टर हमेशा की तरह मुस्कराते रहें। ऐसी ही मनोरंजक बहसें कराते रहें। हंगामे टालने की कोशिशें करते रहें। लोकतंत्र के लिए ये सभी कोशिशें आवश्यक हैं। लोकतंत्र में सवाल दर सवाल और बहसें न हों तो सब रीना-रीना लगता है। बस उम्मीद करनी चाहिए कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हमारी सरकारध्वनिमत के बजाय आम सहमति से सरकार चलाने और देश को नई शक्ति देने की कोशिश करती रहेगी।

मणिपुर में वायरल वीडियो के मुद्दे को बीजेपी ने ऐसे लिया है जैसे पार्टी देशभर में महिलाओं के सम्मान पर ,,,चर्चा करवाना चाह रही है. राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में महिलाओं के साथ ज्यादती के मुद्दे को बीजेपी लगातार रेखांकित कर रही है आंकड़ों के साथ बीजेपी विपक्ष शासित प्रदेशों की ओर हमले को ले जा सकती है.

ऐसे में मणिपुर के इकलौते मुद्दे पर तैयारी के साथ आया विपक्ष कैसे इस हमले को झेलेगा इसका सबको इंतजार रहेगा.आपको क्या लगता है अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के लिए सही साबित होगा या नहीं अपनी राय कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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