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Rajya Sabha Election 2024 : क्रॉस वोटिंग ने यूपी में सपा और हिमाचल में बिगाड़ा कांग्रेस का खेल!

Rajya Sabha Election 2024 : दोस्तों एक तरफ तो काँग्रेस राहुल गांधी भारत जोड़ों यात्रा न्याय यात्रा देश को जोड़ते घूम रहे है और दूसरी तरफ खुद का घर टूटता जा रहा है खुद के विधायक ही धोका दे रहे है आखिर क्यों काँग्रेस और सपा विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की क्या उनके अंतरात्मा की आवाज मर चुकी है या कुछ अच्छा खासा सौदा हुआ है बीजेपी के साथ जहां कांग्रेस की सरकार है वहां भी अपना उम्मीदवार नहीं जीता पाए। लोकसभा के चुनावों से पहले हुए राज्यसभा के चुनावों ने आगे की तस्वीर साफ कर दी है। अनुमान यही लगाया जा रहा है कि अगले कुछ दिनों के भीतर उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में अभी और ‘अंतरात्मा की आवाज’ जागने वाली हैं। आइए जानते हैं क्या होती है क्रॉस वोटिंग? चुनाव में इसका क्या होता है असर? क्रॉस वोटिंग वालों पर पार्टी क्या लेती है एक्शन?

यूपी, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की कुल 15 राज्यसभा सीटों पर 27 फरवरी को चुनाव हुए. इनमें से बीजेपी ने कुल 10 सीटें जीत ली हैं. बीजेपी को यूपी की 10 सीटों में से 8 पर जीत मिली. कर्नाटक की एक सीट पर भी पार्टी ने जीत हासिल की. बीजेपी ने हिमाचल की एकमात्र सीट भी जीत ली कांग्रेस को कर्नाटक की 3 सीटों पर जीत मिली. यूपी की 2 सीट पर सपा ने कब्जा जमाया.

क्रॉस-वोटिंग को लेकर उठ रहे सवाल

यूपी में राज्यसभा की 10 सीटों पर चुनाव होने थे. विधायकों की संख्या के हिसाब से बीजेपी के सात और समाजवादी पार्टी के तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित थी. दोनों ही दलों ने पहले इतने ही उम्मीदवार उतारे भी थे लेकिन बीजेपी ने आखिरी मौके पर एक और उम्मीदवार को उतारकर मतदान को जटिल बना दिया. बताया जा रहा है कि इस चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) के सात विधायकों ने क्रॉस-वोटिंग की है, जबकि एक विधायक वोट डालने नहीं आईं. वहीं नेशनल डेमोक्रैटिक अलायंस (एनडीए) में शामिल ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के एक विधायक ने भी क्रॉस-वोट किया. सपा विधायकों की क्रॉस-वोटिंग के चलते बीजेपी के सभी आठ उम्मीदवारों की जीत तय मानी जा रही है.

हालांकि, इस क्रॉस-वोटिंग को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं., सपा के नेता अखिलेश यादव ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने विधायकों को प्रलोभन देकर और धमकाकर अपने उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कराया है., वहीं, बीजेपी का कहना है कि विधायकों ने अपनी मर्जी से वोट दिया है. क्रॉस-वोटिंग करने वाले विधायकों का कहना है कि उन्होंने अपनी ‘अंतरात्मा की आवाज’ पर मतदान किया है.

यूपी में राज्यसभा चुनाव के लिए वोटिंग शुरू होने के कुछ देर बाद ही सपा के चीफ व्हिप और विधायक मनोज कुमार पांडे ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. फिर यूपी में सपा के 7 विधायकों ने NDA को वोट दिया. ये विधायक राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी, मनोज पांडेय, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य हैं., दरअसल, क्रॉस वोटिंग बीजेपी के लिए ही फायदेमंद है. बीजेपी ने यूपी की 10 सीटों पर 8 कैंडिडेट उतारे हैं. सपा ने 3 उम्मीदवार खड़े किए हैं. अपने आठवें कैंडिडेट संजय सेठ को जीताने और सपा के तीसरे कैंडिडेट को हराने के लिए बीजेपी को क्रॉस वोटिंग का ही सहारा था. पार्टी ने सपा के वोटों में सेंध लगाई और इसका फायदा भी उसे मिला.

हिमाचल की एक सीट के लिए भी वोटिंग हुई. यहां सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी उम्मीदवार के लिए क्रॉस वोटिंग की. रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के 6 विधायकों ने बीजेपी के सपोर्ट में वोट दिया है. कांग्रेस के 10 विधायकों के पाला बदलने की भी खबर है. अगर ऐसा हुआ था तो कांग्रेस की सरकार भी अल्पमत में आ सकती है.

कर्नाटक में बीजेपी के साथ ही खेल हो गया. बीजेपी विधायक एसटी सोमशेखर ने कांग्रेस प्रत्याशी को वोट किया है. कर्नाटक में कांग्रेस के 134 विधायक हैं जबकि बीजेपी के 66 और जनता दल-सेक्युलर (जेडीएस) के 19 विधायक हैं. इसके अलावा कर्नाटक में चार अन्य विधायक हैं. कांग्रेस ने चार अन्य विधायकों में से दो निर्दलीय और सर्वोदय कर्नाटक पक्ष के दर्शन पुत्तनैया का समर्थन होने का दावा किया है. कांग्रेस यहां 3 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है.

मंगलवार को हुए राज्यसभा चुनावों के लिए मतदान से आने वाले लोकसभा चुनावों की बहुत हद तक तस्वीर स्पष्ट हो चुकी है। जिस तरह समाजवादी पार्टी के विधायकों ने अंतरात्मा की आवाज के साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी को वोट दिया है। ठीक उसी तर्ज पर ऐसे कई और नेताओं के अंतरात्मा की आवाज आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश के सियासी मैदान में सुनाई पड़ सकती है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जल्द ही कई अन्य सियासी दलों के नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले हैं। इसमें पश्चिम से लेकर बुंदेलखंड और मध्य उत्तर प्रदेश के भी कई बड़े नेता भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं।

क्रॉस-वोटिंग क्या है ?

दोस्तों क्रॉस-वोटिंग का मतलब है कि किसी पार्टी का विधायक किसी दूसरे दल के उम्मीदवार को वोट करे. हालांकि, मतदान करते समय पहले वोट को पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखाया जाता है और उसके बाद सभापति के पास जमा किया जाता है. राज्यसभा चुनाव, विधान परिषद चुनाव और राष्ट्रपति के चुनाव में अक्सर क्रॉस- वोटिंग होती है. साल 1998 में क्रॉस-वोटिंग के चलते कांग्रेस उम्मीदवार के चुनाव हारने के कारण ओपन बैलेट का नियम लाया गया. इसके तहत हर विधायक को अपना वोट पार्टी के मुखिया या अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है. हालांकि उसके बाद भी क्रॉस-वोटिंग होती रही और आज भी हो रही है

राज्यसभा के चुनाव में राज्यों की विधानसभाओं के विधायक हिस्सा लेते हैं. इसमें विधान परिषद के सदस्य वोट नहीं डालते. राज्यसभा चुनाव की वोटिंग का एक फॉर्मूला होता है और यह लोकसभा के मतदान से अलग होता है. विधायकों को चुनाव के दौरान प्राथमिकता के आधार पर वोट देना होता है. उन्हें कागज पर लिखकर बताना होता है कि उनकी पहली पसंद कौन है और दूसरी पसंद कौन. सबसे पहले पहली पसंद के वोटों की गिनती होती है और जिसे ज्यादा मत मिलते हैं यानी जो मतदान का कोटा पूरा कर लेगा वही जीता हुआ माना जाएगा. अगर प्रथम वरीयता के वोटों से जीत सुनिश्चित नहीं होती है, तो दूसरी वरीयता के मतों की गणना होती है.

क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायक के बारे में अगर पार्टी जानती है तो उसके खिलाफ एक्शन ले सकती है. 2022 में हरियाणा के कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई ने क्रॉस वोटिंग की थी. वह बाद में बीजेपी में शामिल हो गए. इसी चुनाव में राजस्थान से बीजेपी नेता शोभारानी कुशवाह ने भी क्रॉस वोटिंग की थी. वह भी पार्टी से निकाल दी गईं. 2016 में उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के 6 नेताओं ने बीजेपी के लिए क्रॉस वोटिंग की थी. पार्टी ने सभी को निष्कासित कर दिया था. 2017 में कांग्रेस की अपील पर दो नेताओं के वोट खारिज हो गए थे क्योंकि इन दोनों ने अपना बैलेट पेपर अमित शाह को दिखाया था. इसके बाद कांग्रेस के अहमद पटेल राज्यसभा सांसद बने थे.

उत्तर प्रदेश की सियासत में होने वाली उठापटक का असर लोकसभा चुनाव में सीधे तौर पर पड़ेगा। हालांकि इसके नतीजे तो लोकसभा चुनाव परिणामों के साथ ही पता चलेंगे। लेकिन माना यही जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों को जीतने के फॉर्मूले पर जो सियासी बिसात बिछाई है वह अन्य राजनीतिक दलों में हलचल पैदा कर रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तो राज्यसभा के लिए हुए मतदान के दौरान ही कहा कि राज्यसभा सीट के लिए हुआ यह मतदान उनके साथियों की पहचान उजागर करने की परीक्षा थी। आपकी इस पर क्या राय है हमे कमेन्ट कर जरूर बताएँ

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